February 17, 2010

विद्यालय जैसे पवित्र जगह मत फैलाओ भेद भाव ...........

देवेश प्रताप

एक समय हुआ करता था जब गुरुओं से शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरुकुल जाना पड़ता था मो-माया छोड़ कर भौतिकवाद को त्याग कर शिक्षा प्राप्त किया जाता था , परन्तु समय के अनुसार धीरे धीरे सारे नियम बदलते गए जो की जरूरी भी था , शिक्षा ग्रहण करने के लिए इमारते बन् ने लगी बड़े बड़े विद्यालय -विश्वविद्यालय बन कर तैयार होने लगे शिक्षा का ऐसा विस्तार भारत देश के लि अतिआवाश्यक था शिक्षा के विस्तार का मतलब देश का विस्तार जितने ज्यादा लोग शिक्षित होंगे उतना ही देश का विकास होगा ,ऐसा माना जाता है जैसे -जैसे शिक्षा का निजी करण बढ़ता गया वैसे वैसे शिक्षा का व्यापार भी बढ़ गया या यूँ कहिये खरीदारी बढती गयी आज के दौर में धुंआ -धाड़ डिग्रियां बिक रही है बस खरीदार के पास उतनी रकम होने चाहिये ये माना कि निजी विद्यालय जितनी रकम लेते है कम से कम उतनी व्यवस्था भी मुहैया कराते है आज के दौर में फीस महंगी हो तो विद्यालय अच्छा ही होगा ये जरूरी नहीं ये मात्र एक वहम होता है दिल्ली और आस पास कुछ ऐसे विद्यालय है जो होटल की राह पर चलते है या यूँ कहिये शिक्षा बेचने की सितारा दूकान चलाते है यदि आप अपने बच्चे को वातानुकूलित कमरे में पढ़ाना चाहते है तो उसके इतने रु ........ फीस है, यदि सामान्य कमरे में पढाना चाहते है तो उसके इतने रु .......है , वाह ! क्या व्यवस्था है एक ही छत के नीचे, एक ही कक्षा में राम और श्याम अलग -अलग कमरे में पढते होंगे राम, सामान्य कमरे में पढता होगा और श्याम वातुनुकूलित कमरे में ,लेकिन यहाँ राम और श्याम बाहर निकलने पर ,राम- श्याम से बात करने में असहजता महसूस करता होगा क्यूंकि कही कही उस बच्चे के दिमाग में ये सवाल उठता होगा कि मैं क्यों नहीं वातानुकूलित कमरें में पढता ??,,,,ऐसे नजाने कितने प्रश्न उठते होंगे ,उन मासूमो के दिमाग में जो ...सामान्य कमरे में पढ़ने के लिए दाखिला लिए होंगे ऐसे विद्यालय .....क्या शिक्षा देते होंगे ? यदि सच में कोई शिक्षक होगा तो इस विद्यालय की डेहरी पार करने में उसका ज़मीर साथ नहीं देगा ........मुझे तो बिलकुल नहीं लगता की ऐसे विद्यालय में शिक्षक पढाते होंगे ....वो भी व्यापारी होंगे किताबों के ......और जो इस विद्यालय की नीव रखा होगा उसका तो शिक्षा से कोई लेना देना नहीं होगा .......वो व्यक्ति भी जरूर किसी होटल का व्यापारी होगा और जो अभिभावक उस विद्यालय में अपने बच्चे को पढ़ने के लिए भेजते होंगे .......वो शायद अपने आप से मजबूर होंगे विद्यालय जैसे पवित्र जगह मत फैलाओ भेद भाव ........कही तो पवित्रता बरकरार रहने दो ...........!!!

18 comments:

Urmi said...

आपने बिल्कुल सही लिखा है! पहले जिस तरह से शिक्षा मिलती थी स्कूल में आज ज़माना बदल गया है! लोगों का व्यव्हार, भेद-भाव इत्यादि इतने बढ़ चुके हैं कि शिक्षा में अब वो बात ही नहीं रही! मेरे पिताजी कहते हैं की किस तरह से उन्हें स्कूल में अध्यापक जी पढ़ाया करते थे पर आज अगर देखा जाए तो ज़मीन आसमान का फर्क नज़र आता है!

ekal !!! ek awaaz said...

tere es drd ko samjhe ga kaun shaki ,berahmo ke upar har chikh beasar hai saki
phir bhi chikhane se tujhe mai na rokunga kyoki es rat ki subah honi hai baki.
keep it up
acha laga ....................

Mithilesh dubey said...

भाई आपसे बिल्कुल सहमत हूँ , अब पढ़ाई मात्र व्यापर बन के रह गया ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज हर चीज़ को व्यापार बना दिया गया है....और साथ साथ विद्यालयों में ये भेद भाव तो बहुत ही शर्मनाक बात है...जहाँ बच्चों को ज्ञान दिया जाता है वहाँ इतने आराम की क्या ज़रूरत? पर आज जिनके पास पैसा है वो दिखायेंगे कैसे? इसी का लाभ कुछ विद्यालय उठाना चाहते हैं....जागरूक करने वाला लेख...पर आँख खुले तब ना...

रानीविशाल said...

Bahut accha lekh laga, aapane ek dam sahi samsya ki aur dhyan aakrshit kraya hai ....sach much padai ab vyapaar ho chali hai!

दीपक 'मशाल' said...

Bahut hi achchha mudda uthaya Devesh ji... vastav me aajkal yahin se bhed bhav ki shuruaat ho rahi hai...
Jai Hind...

Dinbandhu Vats said...

aap ka vichar bilkul sahi aur vyavharik hai. par , yah to hoga hi. ham log so called aadhunikata ki or jo ja rahe haia.

aap ka mere chhote or naye blog par swagat hai.

दिगम्बर नासवा said...

आपका कहना सही है ... आज पढ़ाई के नाम पर बहुत बड़ा व्योपार हो रहा है ......ये सबसे बड़ा धंधा है जिसमें रिसेशन का भी फ़र्क नही पढ़ता ..... जिसपे पैसा नही है वो अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा ही नही सकता ....

एक ही विधयालय में २ तरह की क्लास ... ये भी वैसे पहली बार सुना है .. ए सी कमरे और सामान्य कमरे .. क्या कहने भाई ...

''अपनी माटी'' वेबपत्रिका सम्पादन मंडल said...

achha likhate he.

माणिक
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shama said...

Aapke har shabdse sahmat hun!

Akanksha Yadav said...

बहुत सही लिखा आपने. यही तो विडम्बना है.


.................
"शब्द-शिखर" पर इस बार अंडमान के आमों का आनंद लें.

रश्मि प्रभा... said...

sahi kaha aapne

shikha varshney said...

ek hi school main bhedbhav? pahli baar suna hai ...bahut fasosjanak hai.

Pawan Kumar said...

उम्दा पोस्ट........जब तक शिक्षा में गुणवत्ता नहीं स्थापित की जाएगी.......मानक स्थापित नहीं किये जायेंगे....प्रगति का स्वरुप इन्क्ल्युसिव
नहीं हो सकता.

प्रज्ञा पाण्डेय said...

bilkul sahi kaha
apne vidyaly jaise
jgh pr bhed bhav mt
badao......
achhi prastuti.......

RAJNISH PARIHAR said...

शिक्षा का बाजारी करण हो गया है..तभी तो बच्चो में नैतिक मूल्यों की कमी साफ़ दिखाई देती है!स्वस्थ प्रतिसपर्धा का स्थान आगे बढ़ने के लिए कुछ भी करने की ललक ने ले लिया है..!आपसे बिल्कुल सहमत हूँ ...

mukti said...

आजकल के स्कूलों में फ़ीस बहुत अधिक होती है, लेकिन ज़रूरी नहीं कि फ़ीस ज़्यादा हो तो स्कूल भी अच्छे हों. इस बात से मैं सहमत हूँ. आजकल शिक्षा का बाज़ारीकरण हो गया है, यह भी ठीक है, लेकिन एक ही स्कूल में अलग-अलग बैठने की व्यवस्था पहली बार सुन रही हूँ. खैर, यदि ऐसा है, तो यह बहुत ग़लत है.

Dev said...

आप लोगो ने अपने विचार प्रकट किये इसकेलिए बहुत बहुत शुक्रिया .....एक ही स्कूल में एक ही कक्षा में ऐसे व्यस्था दिल्ली के कुछ स्कूलों में चल रही .....कुछ नियमों को ध्यान में रखते हुए ....उन स्कूलों का नाम यहाँ नहीं लिखा ......ऐसी व्यस्था के बारें में जब मैंने फली बार सुना था तो आश्चर्य हुआ था .

एक नज़र इधर भी

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