February 3, 2010

सुना है तेरे शहर के ...........


देवेश प्रताप

ये मन की एक कल्पना जो शब्दों का रूप ले लिया ।





सुना
है तेरे शहर के हर ज़र्रे ये शिकायत करते है
कि तूने नंगे पावं चलना छोड़ दिया

एक वक्त था तू जब चला करती थी
पेड़ ,पत्ती तेरे संग झूमा करते थे
फूल तेरी राहों में बिखर जाते थे
कांटे तुझको देख कर टूट जाते थे

कि तूने बागो में जाना छोड़ दिया॥


आइना भी तुझे देख कर इतरा जाता था
मौसम भी तुझसे मिलनों को तरस जाता था
सज-सवंर के जब तू चला करती थी
चाँद-तारे , ज़मी से रश्क करते थे

कि तूने सजना -सवंरना छोड़ दिया॥

तेरे छूने से पत्थर भी पिघल जाता था
लहरे तुझ को पाकर उछल जाती थी
हवाएं भी तेरा इन्तजार करती थी

कि तूने घर से निकलना छोड़ दिया॥


13 comments:

प्रज्ञा पाण्डेय said...

sunder prastuti

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मन को छू गये भाव। बधाई स्वीकारें।
--------
घूँघट में रहने वाली इतिहास बनाने निकली हैं।
खाने पीने में लोग इतने पीछे हैं, पता नहीं था।

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत कविता ! इस शानदार, लाजवाब और उम्दा कविता के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!

Unknown said...

good well done devesh bhai

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा अभिव्यक्ति.

निर्मला कपिला said...

सुना है तेरे शहर के हर ज़र्रे ये शिकायत करते है
कि तूने नंगे पावं चलना छोड़ दिया ।
ज़र्र्रों की शिकायत सही है बहुत अच्छी रचना बधाई

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

khoobsurat abhivyakti

Dev said...

हमारा हऔसला अफजाई करने के लिए आप सब का बहुत बहुत शुक्रिया

रानीविशाल said...

Kya khub likha hai aapne...Badhai!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

संजय भास्‍कर said...

Kya khub likha hai aapne...Badhai!!

संजय भास्‍कर said...

हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

संजय भास्‍कर said...

बहुत ख़ूबसूरत कविता !
DOBARA PADHNE CHALA AAYA

Sapna Jain said...

yaar tumne to "lucy grey" ki yaad dila di.....jaroor aapki b lucy aapke mind me hai tabhi aap itni achi rachnaye likhte ho..
mai sai hu na....kya naam dena pasand karenge use???

एक नज़र इधर भी

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