December 15, 2010

देश कौन चला रहा है सरकार य उद्धोगपति ?????

देवेश प्रताप

भारत की २० करोड़ जनता भूख की नींद सोती है , १५ करोड़ बाप सुबह ये सोच के उठता है की अपने बच्चे को ख़ुद से बेहतर ज़िन्दगी प्रदान करेगा , अफ़सोस वही बाप , बेटे को पहेले कन्धा देता है, कुपोष या किसी बीमारी का शिकार होने से | ऐसे भारत में सत्ता सम्भालने वाले नेता पैसों का खेल खेलते हैं | जब मंत्रियों द्वारा किया गया घोटाला सामने आता है तो ऐसा लगता है कि अब जाकर उसने नेता होने का सबूत दिया है | और शायद उनकी बिरादरी में इसे बहुत उच्च स्तर का कार्य माना जाता होगा | हाल में सामने आए जी स्पेक्ट्रम का मामला जिसमें नेताओं से लेकर उद्धोगपतियों तथा मीडिया के नकाबपोश चेहरे सामने आए | टाटा के मालिक ने सुप्रीम कोर्ट में ये गुहार लगायी की फ़ोन टेप को किसी भी तरह सार्वजनिक किया जाए | सुप्रीम कोर्ट ने भी चहकते हुए मीडिया पर झाड़ लगायी की मीडिया अपनी हद में रहे | मेरा यह मानना है कि टेप को सभी फ़ोन पर caller tune की तरह लगा देना चाहिए ताकि लोंगो को ये पता चले कि आप जिस देश में रहते हैं , उस देश को सरकार नहीं यहाँ के उद्धोगपति चलाते हैं |

December 8, 2010

मन में सवालों के हिलोरे

देवेश प्रताप

आज सुबह से मन में कई सवाल हिलोरे रहें हैं | पता नहीं ज़िन्दगी में जिस उंचाई को छूने की तमन्ना है वहाँ तक पहुँच पाउँगा या नहीं , जिस डगर पर चल रहा हूँ यकीनन ये रास्ता उस मजिल की नहीं जाता , फिर मैं क्यूँ उस रास्ते पर बढ़ रहा हूँ ? ऐसे कुछ सवाल पूरा दिन मेरे जहन में उठते रहे | बचपन से नजाने ऐसा क्यूँ रहा जिस रस्ते पर चलने के लिए सोचा उससे हमेशा उल्टा चलना पड़ा , जन्संचारिता की पढाई जब शुरू हुई तो मन में एक ही विचार था की यहाँ से निकलने के बाद पत्रकारिता में कदम रखेंगे लेकिन जैसे जैसे कोर्स आगे बढ़ता गया फिल्म और टेलीविज़न की पढाई आई तो समझ में आया की असली क्षेत्र तो मेरा ये है , जिसमें विडियो एडिटिंग , फोटोग्राफी , विडियोकैमरा , तथा निर्देशन मेरा आकर्षण का केंद्र बनगया हालाकिं अपने आपको साबित करते हुए विडियो एडिटिंग , और कैमरे पर अच्छा अनुभव प्राप्त कर लिया , रही सही निर्देशन तो कॉलेज स्तर के कार्यक्रम में वो भी करके देखा , तथा इलाहाबाद विश्वविदालय पर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाया | अब अन्तः मन ये कह रहा है की पत्रकारिता का क्षेत्र में क्यूँ उतर आया .......लेकिन उसकी भी एक मजबूरी जिस संस्थान में काम कर रहा हूँ , रखा तो मुख्य रूप से कैमरा और विडियो एडिटिंग के लिए गया था | लेकिन कुछ कारणो से रिपोर्टिंग भी करनी पड़ रही है | जो की मै बिलकुल नहीं चाहता कि मै एक पत्रकार बनू क्यूंकि मेरे अन्दर वो जील नहीं है , हाँ क्रियेटिविटी से जुड़े किसी भी चीज़ के लिए मै तैयार हूँ , चाहे वो लेखन हो या एडिटिंग या निर्देशन | फिलहाल अच्छे वक्त का इंतज़ार है | मन में चल रहे इस उथल पुथल को आप लोंगो के सामने रख कर बड़ा सुकून मिला | ठीक उसी तरह जैसे एक बच्चा परेशान हो कर अपनी माँ से सब कुछ कह देता है , और फिर आँचल में सर रख कर सो जाता है |

December 7, 2010

आप लोंगो से बिछड़े हुए ३ महीने हो गये

देवेश प्रताप


क्या कहूँ , क्या लिखूं कुछ समझ नहीं आरहा | आप लोंगो से बिछड़े हुए ३ महीने हो गये | आज ऐसा लग रहा है दोबारा इस ब्लॉग की दुनिया में जन्म हो रहा है | इतने दिनों में ये तो तय था आप सबको बहुत याद किया | पिछले दिनों समय के जाल में कुछ इस तरह फंसा की उससे निकल पाना मुश्किल हो गया | हालाँकि इतने दिनों में बहुत कुछ बदल गया | जन संचारिता की पढाई भी पूरी होगई , कॉलेज से बिदाई लेकर जीवन के दूसरे मोड़ पर आगया हूँ । जहां से ये तय करना है अब जाना कहाँ है | आप सब के आशीर्वाद से एक ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल www.thenews24x7.com में बतौर फोटोजर्नलिस्ट काम मिलगया है | ये सफलता की पहली सीढ़ी जिस पर कदम रखा है | वैसे यहाँ काम करने के बहुत अच्छा लग रहा है | जॉब मिले एक महीना होगया लेकिन वक्त का प़ता न चला | अब देखते हैं आगे आगे ज़िन्दगी कहाँ ले जाती है या फिर हम ज़िन्दगी को कहाँ लजाते हैं | आप लोंगो से ये वादा तो नहीं लेकिन कोशिश ज़रूर करूँगा की रोजाना मुलकात होती रहे |

August 26, 2010

इस रचना में तुम हो ......

देवेश प्रताप

तुम्हे देखा है कही इन वादियों के
बीच
फूलों के जैसे .......हंसी हैं , सुरीली हवा की जैसी
चंचलता ,
तुम वही हो जिसे मैंने सपनो में ढूंढा था

तुम इन फिज़ाओं में कहा चली जाती
हो ,
बैठ कर मै , तुम्हारा रस्ता संजोता हूँ
तुम्हरी झलक पाने के लिए आस्मां
ऊपर से निहारता है .......

तुम्हारे पायल की खनक
सुनकर दिल के तार
बजने लगते है ।
तुम्हारी मीठी सी आवाज़ जब कानो
में जाती है ,
इस जहां की हर आवाज़ फीकी लगने
लगती है ।

इतनी सरलता , इतनी सादगी , इतनी
सुन्दरता ......देख कर प्रकृति भी
खुशनुमा हो जाती है ।
मै तो कायल रहता हूँ तुम्हारी
इस अदायगी पर .....तुम्हे देख कर
मन्त्र मुग्ध हो जाता हूँ ।

ये रचना किसी के लिए समर्पित है ..............शब्द शायद कमजोर होंगे ......लेकिन भाव वही हैं ।

August 15, 2010

जय हिंद , जय भारत

आप सबसे क्षमा चाहता हूँ .......ब्लॉग पर नियमित रूप से समय नहीं दे पा रहे है । कुछ व्यस्तता के कारण वश यहाँ पर आना नहीं हो पा रहा है ।

स्वतंत्रता दिवस ६४ वें वर्षगाँठ को मना रहे है । ये दिन हम सभी भारत वासियों के लिए बहुत ही महतवपूर्ण दिन होता है । आप सब को स्वतंत्रता दिवस कि ढेर सारी शुभकामनाएं.... इस अवसर पर एक छोटी सी रचना .......


रहे ख्याल इतना हे ! देशवासिओं
हम आज़ाद भारत में अपनी साँस
ले रहे है ।

जिसने लगा दी अपनी जिंदगी
इस आज़ादी के लिए
उनके इस कुर्बानी को
यूँ न जाया करो ,
उनके इस बलिदान का
कुछ तो ख्याल करो ।

भ्रस्टाचारी , घूस खोरी ,
मार काट न करो ।
भारत कि गरिमा को
यूँ ही न तार -तार करो ।

खून पसीने का बीज जो
मिटटी में उगा रहा है ,
उसकी मेहनत का
कुछ तो कद्र करो

क्षेत्रवाद , जातीवाद ,भाषावाद
का नशा न करो ,
देश कि अखंडता
को यूँ न खंडित करो ।

रहे ख्याल इतना हे ! देशवासियों


जय हिंद , जय भारत ।



August 4, 2010

पतंग...........

देवेश प्रताप

एक धागे में बंधी
मै तो उड़ चली थी,

स्वछन्द आस्मां
में
मै लेहरा रही थी,

आस्मां भी बाहें
फैलाये मेरा इंतज़ार
कर रहा था

मै भी झूम झूम कर
आगे बढ़ रही थी
मन
में एक विश्वास
था , एक डोर के
सहारे अम्बर
को छू लेने का
जज्बा था

लेकिन ये क्या , किस से देखा
नहीं गया , यूँ मेरा
गगन में लहराना ,
मेरी
तम्मनाओ के पंख
किसने एक पल में
काट
दिए ,

क्यूँ काट दिया मेरी उस विश्वास
कि डोर को जिसके सहारे
मै आस्मां को
छूना चाहती थी ,

मेरी डोर को काटने वाले
को सुकून मिल गया होगा ,
मुझे आस्मां में भटकते हुए
और ज़मीं पर गिरते हुए
देख कर

August 2, 2010

ये भी दिल्ली का एक हिस्सा है ????

देवेश प्रताप

दिल्ली में दो दिन से मौसम मेहरबान है .......बारिश भी झमाझम हो रही है मौसम का आनंद दिल्ली वासी ले रहे हैं लेकिन कॉमन वेल्थ खेल के तैयारी वाले शायद थोडा सी निराशा हो रही हो क्यूंकि दिन रात चल रहे काम में बांधापड़ रही है फिर भी कार्य प्रगति पर है। हम चाहते भी है की खेल के पहले दिल्ली दुल्हन की तरह सज के तैयार हो जाये लेकिन इस सजवाट में क्या केवल वही तक ध्यान दिया जा रहा है जहां तक खेल का सम्बन्ध है कल शाम में दिल्ली के खानपुर एरिया में एक काम से जाना हुआ है जैसे ही हम रोड से थोडा अन्दर की तरफ बढे ....तो विश्वास ही नहीं हुआ की ये भी दिल्ली का हिस्सा है जगह -जगह पानी भरा था और पानी इस तरह भरा था जो निकलने का कही से रास्ता नज़र नहीं रहा था खैर हम अपना काम निपटा कर वह से निकलने ही वाले थे की बारिश मेहरबान होगयी हम भी रुक गए , कि बारिश थोड़ी धीमी हो जाये या रुक जाये तब निकले कुछ ही देर बाद बारिश धीमी हो गयी ....मै और मेरे मित्र आपस में बात करने लगे ''की इतनी बारिश में निकलते है ...नहीं तो तेज हो गयी तो भीग ही जायेंगे '' बगल में एक खड़े व्यक्ति ने कहा ...''हां निकल जाईये वरना यहाँ इनता पानी भर जायेगा की रास्ता नज़र नहीं आएगा '' ये सुनकर थोडा अजीब लगा जैसे ही आगे बढ़ा की बारिश तेज हो गयी और फिर हम लोग बाइक किनारे लगा कर खड़े हो गए ......देखते ही देखते रास्ता कब पानी की आगोश में खो गया पाता ही नहीं चला यह हाल देख कर ये लगा की इसकी फ़िक्र सरकार क्यूँ करे क्यूंकि इस रास्ते कभी कोई मिनिस्टर गुजरेगा कोई सेलेब्रिटी .....तो ऐसे जगह सरकार फ़ालतू में क्यूँ पैसा खर्च करे वहाँ से तो केवल आम आदमी गुजरेगा और आम आदमी को लिए किसी भी व्यस्था की ज़रुरत नहीं होती

August 1, 2010

ये दोस्ती .....


देवेश प्रताप

सारे रिश्ते ऊपर से बन कर आते है ,दोस्ती एक ऐसा खूबसूरत रिश्ता जिसे हम ख़ुद बनाते है । आज firendship day है । यूँ तो किसी भी रिश्तों का अहसास दिलाने के लिए किसी विशेष दिन की आवश्यकता नहीं होती । वैसे जिस रिश्ते में स्वार्थ नहीं उससे ज्यादा खूबसूरत रिश्ता कोई नहीं हो सकता । और यही होता है सच्ची दोस्ती में जो सिर्फ दोस्ती को निभाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है । कभी कभी ऐसा भी होता है जब कोई ये सवाल करता है की सबसे अच्छा दोस्त कौन है और शर्त ये की कोई एक ही होना चाहिए , ये बड़ा ही जटिल सवाल होता है । इतनी बड़ी दुनिया में कोई एक ही सबसे अच्छा और करीबी दोस्त कैसे हो सकता है । दोस्त की लिस्ट में कई ऐसे दोस्त होते है जो सबसे ज़्यादा करीब होते है । दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता जिसमें किसी भी शर्त की जगह नहीं होती , पूर्ण रूप से स्वतंत्र होती है । जहाँ भी ये शब्द आता है वहां किसी भी प्रकार की बांधा नहीं रह जाती है , सिर्फ सवतंत्रता रह जाती है । आज के मायने में दोस्ती करना तो आसान होगया है ठीक उसी तरह ....रेत पर 'दोस्त' शब्द लिखना , लेकिन उसे निभाना ' पानी पर दोस्त लिखना ' जैसे होता है । ज़िन्दगी के सफ़र में बहुत से दोस्त बनते है और साथ भी छूटते हैं , ये मिलना और विछ्ड़ना यही तो ज़िन्दगी की नियति है । इस दिन के लिए आप सब को हमारे तरफ से ढेर सारी बंधाई ।

July 31, 2010

जाने क्यूँ इतना याद आते हो .....

देवेश प्रताप


बिन बरसात के आज भी तुम
बरस
जाते हो
जाने क्यूँ इतना याद आते हो

सावन
के झूलों की तरह ,
आज भी मन को झुला जाते हो
जाने क्यूँ इतना याद आते हो

तुम
यूँ चले तो गए मेरी दुनिया से दूर
इन
आँखों से दूर कैसे जाओगे
आज
भी इन नैनों में आंसू बन
कर
छलक जाते हो ,
जाने
क्यूँ इतना याद आते हो

वादों
की लकीरों को तुम पार
कर के चले गए ,
मन की लकीरों को कैसे
पार
कर पाओगे
दिल
की गली से यूँ ही
गुजर
जाते हो
जाने
क्यूँ इतना याद आते हो

July 30, 2010

ये साहब कब आयेंगे समय पर .........

देवेश प्रताप

सरकारी दफ्तर में किसी भी काम को लेट लतीफ़ करने का एक चलन बनगया है । आप कितनी भी जल्दी में हो कितनी भी परेशानी में हो इस बात को सरकारी कर्मचारी नहीं समझेंगे कुछ अपवाद को छोड़ क । अभी २ दिन पहले कि बात है । मेरे एक मित्र को फिल्म शूटिंग कि लिए नॉएडा में अनुमति चाहिए थी । इस काम के लिए हम लोग सिटी magistrate के पास गए । वहाँ पर मौजूद एक मुन्सी ने कहा ''आप प्रार्थना पत्र छोड़ जाइये हम इसे आगे बढ़ा देंगे लेकिन समय लगेगा '' मेरे मित्र विकास ने कहा ''हम लोग के पास भी ज़यादा समय नहीं और नहीं इतनी बड़ी फिल्म बनाने जा रहे जिसके लिए इतना व्यस्था चाहिए ...... हम magistrate शाहब से मिलवा दीजिये हम ख़ुद अनुमति लेलेंगे ''
हम लोग अन्दर गए और magistrate से बात किये .......उन्होंने कहा ''हो जायेगा और जिस डेट को आप लोग चाह रहे लघ भाग उसे डेट को अनुमति मिल जाएगी '' ........मुन्सी ने फिर प्रार्थना पत्र पर सारी फोर्मिल्टी अदा किया और हाथो हाथ हम लोग को लेटर हाथ में मिल गया ......और उस प्रार्थना पत्र कि फोटो कॉपी और पांच जगह पर देना था .......सबसे पहले हम लोग ग्रेअटर नॉएडा गए entatainment office वहाँ पहुचने पर पाता चला कि 11.30 तक उनका कोई अता पता नहीं .....एक कर्मचारी से जब हमने पूछा ''कि कब तक आयेंगे'' .......तो उन्होंने कहा '' बड़े साहब है कब आये न आये इसका कोई भोरोसा नहीं '' हमने सोचा वाह क्या बात है ......इंसान कि फितरत तो देखिये कुर्सी निचित है इसलिए उन्हें अब किसी कि भी फ़िक्र नहीं । .......वहां से लौटने के बाद नॉएडा सेक्टर 14 gaye 'S.P traffic के पास ...लगभग उस समय वक्त हुआ रहा होगा 12.30 ..उनके भी अभी तक कोई अता - पता नहीं । इसी तरह 'यस पि सिटी , नॉएडा ऑथोरिटी ऑफिसर .....किसी का भी दर्शन नहीं था । ये तो एक दिन का हाल, जो हम लोंगो ने देखा । ऐसे न जाने कितने लोग रोजाना परेशान होते होंगे और ये अफसर तो सोचते होंगे हम तो अब कुर्सी पर है अब तो वही होगा जो हम चाहेंगे । केवल सिटी magistrate के अलवा को अल अफसर अपने दफ्तर पर मौजूद नहीं मिला। ज़रा सोचिये ये सारे अफसर समय के बाध्य होते तो सब के सब अपने दफ्तर में मौजूद होते तो हम लोग का काम एक ही दिन में हो जाता ।

July 29, 2010

देखते है निष्कर्ष क्या होता है .......

देवेश प्रताप

आखिर हम भी गंगा नहा लिए ......मतलब डकुमेन्ट्री फिल्म शूट कर लिए बस कुछ दिन में सम्पूर्ण करके आप सब के सामने प्रस्तुत करेंगे चलि बात करते है अपने विषय के बारे में .....मैंने इलाहबाद विश्वविद्दालय पर फिल्म बनाने का विषय तय किया ......इसका कारण इलाहाबाद विश्वविद्दालय से ताल्लुकात रखने का और फिर भारत कि प्रतिष्ठित विश्वविद्दालय में से एक .....साहित्य , कला , राजनीति .......तथा प्रशासनिक सेवा के लिए बहुत से महान हस्तियों को जन्म दिया लेकिन पिछले कुछ वर्षों से धीरे धीरे विश्वविद्दालय का सूरज ढलता हुआ नज़र आने लगा अभी हाल ही में इंडिया टुडे ने पुरे भारत के विश्व्विदालय कि रैंकिंग किया जिसमे इलाहबाद विश्व्विदालय को २३ वा स्थान दिया गया इन्ही कुछ बातो पर प्रकाश डालते हुए ......इस डकुमेन्ट्री के द्वारा इलाहाबाद विश्व्विदालय के बारें में दर्शाने का पूरा प्रयाश किया है
एक हफ्फ्ते इलाहबाद में खूब मुज मस्ती के साथ फिल्म शूट किया .........मै विकास , प्रांकुर दीक्षित .......और इलाहाबाद से और दो मित्र शशिकां और सौरभ ........हम सब मिलकर फिल्म शूट किये अब देखते है निष्कर्ष क्या निकलता है फिल्म एडिट करने के बाद ............कुछ तस्वीरें ....


June 30, 2010

हम खिलाते है तभी वह खाते हैं......

देवेश प्रताप

आज सुबह जब सो कर उठा तो देखा सामने वाले घर में काफी चहल -पहल मची थी उठ कर देखा तो सामने वाले घर पर तीसरी मंजिल पर लिंटर पड़ने कि तैयारी चल रही थी मै भी यूँ ही रेलिंग पर टेक लगा कर खड़ा होगया तभी कुछ ही समय बाद दिल्ली पुलिस के एक जीप आई और construction वाले घर से थोड़ी दूर पहले ठहर गयी गाडी के अन्दर पुलिस बैठी थी अन्दर से ही बाहर एक मजदूर को इशारा करके बुलाया और पुलिस वाले ने कुछ उससे कहा मजदूर अपने ठेकेदार को बुलाया ठेकेदार से पुलिस वाले ने कुछ गुफ्तगू किया ठेकेदार , घर के अन्दर गया जिसमें लेंटर पड़ रहा था और कुछ देर बाद बाहर आया और पुलिस कि गाड़ी के पास जाकर पुलिस के हाथ में बंद मुट्ठी से कुछ पकड़ाया पहले तो ये स्पष्ट नहीं हुआ कि उसने पुलिस के हाथ में क्या दिया लेकिन जब पुलिस वाले ने हाथ में 100 कि नोट देखा तो ..बड़े झटके के साथ ठेकेदार के हाथ में वापस कर दिया ....जैसे पुलिस वाला कह रहा हो ये क्या दे रहो इतने पैसे में मै नहीं मानूंगा .......ठेकेदार ने कुछ अपनी चापलूसी दिखाया और पुलिस वाले के हाथ में नोट दोबारा थमा दिया। पुलिस वाला मुह बनाता हुआ 100 कि नोट रख लिया और गाड़ी घुमा कर चल दिए
''दिल्ली पुलिस आपकी सेवा में सदेव तत्पर्य'' ये लाइन अक्सर आपको दिल्ली पुलिस कि गाड़ी में लिखी हुई मिलेगी ......मुझे लगता हैं इसी के ठीक नीचे इनका एक रेट लिस्ट भी लगा देना चाहिए ..कि कौन से काम के लिए कितना पैसा देकर जुर्म मुक्त हुआ जा सकता है ....जिससे लोंगो को और पुलिस वालो को भी आसानी हो और बेचारे पुलिस वालो को भी दिक्कत आये ......जो की कोई भी मन मानी रेट दे कर चला जाता है ये पुलिस वालों के हित कि बात है ....लेकिन सवाल ये है कि भली बातों पर ध्यान कहा दिया जाता हैं

वैसे ध्यान देने वाली बात ये हैं ......कि हम खिलाते है तभी वह खाते हैं ......हम ख़ुद कानून का उल्लंघन करते है और फिर जब गिरेबान पर शिकंजा कसा जाता है .....तो उससे बचने के लिए क़ानून को खरीदने का पूरा प्रयास करते हैं ..........''गलती उनमें भी है और गलती हम में भी है ''

June 26, 2010

लहर कि तड़प साहिल के लिए ........

देवेश प्रताप


आज साहिल उदास हैं

क्यूंकि लहर उससे मिलने नहीं आई,


लहर भी मजबूर हैं समंदर

के गिरफ्त में जो हैं,

साहिल तो बैठ कर लहर

के आने का इंतज़ार करता है,


और लहर भी हर पल समंदर

के गिरफ्त से निकल कर ,

बड़े चाहत के साथ साहिल

से मिलने आती है॥


और साहिल को पाकर उसके

आगोश में खो जाती है


इस बेइन्तेहा प्यार को देख कर ......

साहिल ने भी समंदर के बगल घर बना लिया

और लहर के एक मिलन के लिए

बैठ कर इंतज़ार करने लगा ,


लहर भी इस प्यार को पाने के लिए

अपने आपको हमेशा समंदर के गिरफ्त

से छुडा कर साहिल से मिलने चली आती है॥


वाह!!! क्या प्यार है .....लहर और साहिल का जवाब

नहीं इस प्यार का ..........

लेकिन आज लहर मिलने क्यूँ नहीं आई


“कही किसी इंसान ने समंदर को उसकी इज्ज़त की याद दिलाकर लहर को दफ़न तो नहीं करा दिया .......क्यूंकि इंसान से किसी का बेइंतहा प्यार देखा नहीं जाता”

June 21, 2010

बृहस्पति दर्शन(भारतवर्ष का एक मात्र सिध्य्पीठ मंदिर)

विकास पाण्डेय


कॉलेज के जीवन के अंतिम पड़ाव पर हम गए हैं,जहाँ हम सभी छात्रों को एक-एक डाकूमेंट्री फिल्म बनानी होती है। यह सभी के लिए अनिवार्य होता है। डाकूमेंट्री फिल्म बनाने का मुख्य उद्देश्य किसी निश्चित विषय के बारे में लोगों को इन्फोर्म करना एवं एजुकेट करना होता है। यहाँ मुझे बताते हुए बहुत प्रसन्नता हो रही है कि अभी दो दिन पहले मेरे एक सहपाठी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित बृहस्पति देव जी पर डाकूमेंट्री बनाने के लिए हमे मेरठ ले गए। जहाँ हमें पता चला की यह बृहस्पति देव जी का मंदिर भारतवर्ष में एक मात्र सिध्य्पीथ मंदिर है।यहाँ हर बृहस्पतिवार को सैकड़ो श्रद्धालू मनोकामना दीप जलाकर अपना मनोरथ पूरा करते हैं।

हम लोगों ने भी एक पंथ दो काज किये और शूटिंग के साथ साथ मनोकामना कलावा भी बंधवाये. इस विषय पर पोस्ट लिखने का सिर्फ एक कारण है,आप को इस जानकारी से अवगत कराना ,हो सकता है आपको पता हो लेकिन मुझे लगता है की अगर ६०% लोगों को भी यदि नहीं पता होगा तो मेरे मित्र की और हमारी डाकूमेंट्री फिल्म बनाने का मकसद पूरा हो जायेगा खैर आपके लिए मैंने अपने स्टिल कैमरे से बृहस्पति देव जी के कुछ मनमोहक दृश्य कैद कर लाया हूँ।मुझे विश्वास है की बृहस्पति देव जी के दर्शन से आपके जीवन में सुख,शांति, एवं समृधी आएगी।


अब मै आपसे एक आग्रह करता हूँ कि यदि आपके आस पड़ोस कोई ऐसी चीज़ हो ,को घटना घटी हो, और आपको लगता है कि इस विषय में और भी लोगों को जागरूक करना चाहिए,तो आप कृपया मुझे बताइए,क्यों कि फिल्म्स मानव अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। सभी विषयों पर बनाना सम्भव होगा लेकिन जिस टॉपिक पर मेरे सभी संसाधन ठीक ठाक होंगे उस पर मै ज़रूर डाकूमेंट्री बनाऊंगा ,बस आपकी मदत कि ज़रूरत है

एक नज़र इधर भी

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