आज सुबह जब सो कर उठा तो देखा सामने वाले घर में काफी चहल -पहल मची थी । उठ कर देखा तो सामने वाले घर पर तीसरी मंजिल पर लिंटर पड़ने कि तैयारी चल रही थी । मै भी यूँ ही रेलिंग पर टेक लगा कर खड़ा होगया । तभी कुछ ही समय बाद दिल्ली पुलिस के एक जीप आई और construction वाले घर से थोड़ी दूर पहले ठहर गयी । गाडी के अन्दर पुलिस बैठी थी । अन्दर से ही बाहर एक मजदूर को इशारा करके बुलाया । और पुलिस वाले ने कुछ उससे कहा मजदूर अपने ठेकेदार को बुलाया ठेकेदार से पुलिस वाले ने कुछ गुफ्तगू किया । ठेकेदार , घर के अन्दर गया जिसमें लेंटर पड़ रहा था और कुछ देर बाद बाहर आया । और पुलिस कि गाड़ी के पास जाकर पुलिस के हाथ में बंद मुट्ठी से कुछ पकड़ाया । पहले तो ये स्पष्ट नहीं हुआ कि उसने पुलिस के हाथ में क्या दिया लेकिन जब पुलिस वाले ने हाथ में 100 कि नोट देखा तो ..बड़े झटके के साथ ठेकेदार के हाथ में वापस कर दिया ....जैसे पुलिस वाला कह रहा हो ये क्या दे रहो इतने पैसे में मै नहीं मानूंगा .......ठेकेदार ने कुछ अपनी चापलूसी दिखाया और पुलिस वाले के हाथ में नोट दोबारा थमा दिया। पुलिस वाला मुह बनाता हुआ 100 कि नोट रख लिया और गाड़ी घुमा कर चल दिए ।
''दिल्ली पुलिस आपकी सेवा में सदेव तत्पर्य'' ये लाइन अक्सर आपको दिल्ली पुलिस कि गाड़ी में लिखी हुई मिलेगी ......मुझे लगता हैं इसी के ठीक नीचे इनका एक रेट लिस्ट भी लगा देना चाहिए ..कि कौन से काम के लिए कितना पैसा देकर जुर्म मुक्त हुआ जा सकता है ....जिससे लोंगो को और पुलिस वालो को भी आसानी हो और बेचारे पुलिस वालो को भी दिक्कत न आये ......जो की कोई भी मन मानी रेट दे कर चला जाता है । ये पुलिस वालों के हित कि बात है ....लेकिन सवाल ये है कि भली बातों पर ध्यान कहा दिया जाता हैं ।
वैसे ध्यान देने वाली बात ये हैं ......कि हम खिलाते है तभी वह खाते हैं ......हम ख़ुद कानून का उल्लंघन करते है और फिर जब गिरेबान पर शिकंजा कसा जाता है .....तो उससे बचने के लिए क़ानून को खरीदने का पूरा प्रयास करते हैं ..........''गलती उनमें भी है और गलती हम में भी है ''
''दिल्ली पुलिस आपकी सेवा में सदेव तत्पर्य'' ये लाइन अक्सर आपको दिल्ली पुलिस कि गाड़ी में लिखी हुई मिलेगी ......मुझे लगता हैं इसी के ठीक नीचे इनका एक रेट लिस्ट भी लगा देना चाहिए ..कि कौन से काम के लिए कितना पैसा देकर जुर्म मुक्त हुआ जा सकता है ....जिससे लोंगो को और पुलिस वालो को भी आसानी हो और बेचारे पुलिस वालो को भी दिक्कत न आये ......जो की कोई भी मन मानी रेट दे कर चला जाता है । ये पुलिस वालों के हित कि बात है ....लेकिन सवाल ये है कि भली बातों पर ध्यान कहा दिया जाता हैं ।
वैसे ध्यान देने वाली बात ये हैं ......कि हम खिलाते है तभी वह खाते हैं ......हम ख़ुद कानून का उल्लंघन करते है और फिर जब गिरेबान पर शिकंजा कसा जाता है .....तो उससे बचने के लिए क़ानून को खरीदने का पूरा प्रयास करते हैं ..........''गलती उनमें भी है और गलती हम में भी है ''
11 comments:
'गलती उनमें भी है और गलती हम में भी है ''
बिलकुल सही बात कही है। मगर पैसे की भूख ने सब को अन्धा कर रखा है। शुभकामनायें
समसामयिक बात...धारदार..साधुवाद !!
हमारे पास अपने अपराध छिपाने के कई नायाब तरीके हैं...उसपर दूसरे अपराध का लेबेल चिपका देना और अगर यह सम्भव न हो तो ईश्वर के समक्ष माफी माँग लेना... हम तो भगवान को भी खिलाते हैं, फिर इंसान की क्या बिसात!!
ई भी मुर्गी अऊर अंडा वाला खिस्सा है... पहले खिलाने वाला पैदा हुआ कि खाने वाला... जब तक ई सवाल का जवाब नहीं मिलेगा तब तक इसका जड़ का पता नहीं चलेगा.. अऊर जब जड़ का पता नहीं मिलेगा त उसमें मट्ठा कईसे डालिएगा देवेस बाबू?
पुलिस के पास बहुत हथकंडे होते हैं...उनसे कैसे बचा जाये....पर सच तो यह है कि इमानदारी भी रंग लाती है...जैसा कि धूप पिक्चर में दिखाया गया था...
sach bat to yahi hai ki bhrashtachar me aam janta yani ki ham log barabar k hissedar hai....dukhad hai yah sab bharat k liye...bhrashtachar ka jahar aaj bharat ki nas nas me samahit ho chuka hai..!!
बात तो सही कही है आपने ... पर सच का साथ देने से तकलीफ़ बहुत होती है ...
देवेश मेरे भाई,
सही कहा! "जागो रे" याद आ गया: आप खाते हैं क्यूंकि हम खिलाते हैं!
यार दूध का धुला कोई नहीं है!
बहुत दिन से हमारे यहाँ आना नहीं हुआ.............! नाराज हो?
यह हाल हर सरकारी महकमे का हैं ,सब रिश्वत माँगते हैं,हम कुछ मज़बूरी में कुछ घबराकर देते हैं ,अपना काम हो जाये इस डर से .. बहुत गलत हैं .पोस्ट अच्छी लगी .कम से कम इन सब बातों पर किसीका ध्यान तो हैं .
वीणा साधिका
१०१% सच है देवेश जी..
पहले सिपाही को बोलना पड़ता था .अब वह भी नहीं करना पड़ता है .भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे तक है .अब यह सिस्टम का हिस्सा हो गया है .
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