May 19, 2010

एक जख्म दे जाते है ..........

देवेश प्रताप


वो हर रोज एक जख्म दे जाते हैं

हम उन जख्मों के सहारे जिए जाते हैं ॥


मुझे कोरा कागज समझ कर

अपने दास्तानेब्याँ लिखते हैं ।

लिखते लिखते जब वो थक जाते हैं ।

कागज को टुकड़े टुकड़े कर के चले जाते हैं ॥


मुझे आइना समझ कर वो अपने

दुःख दर्द कहते है ,

आसुंओं कि बारिश को जब भी रोकने

कि कोशिश करता हूँ ।

जाने क्यूँ वो उस बारिश में

भीगना पसंद करते है॥


मैं साहिल कि तरह उनके आने का

इंतज़ार करता हूँ ,

वो लहर बन कर आते तो हैं ॥

पर चंद लम्हों में दूर

चले जाते हैं ॥


हम प्यार के मोती बटोरते रहे

वो उन मोतियों से खेलते रहे ॥


May 16, 2010

ये कैसा इन्साफ .....

देवेश प्रताप

इज्ज़त किसको प्यारी नहीं होती । हर कोई चाहता है समाज में उसकी एक अलग पहचान हो और इज्ज़त हो । जो कि ये मानव का स्वभाभिक गुण है । आज कल हमारे देश में आनर किलिंग के कई मामले सामने आ रहे हैं । आनर किलिंग का मतलब अपनी इज्ज़त के लिए अपने ही खून के रिश्ते का खून करना । उफ़ कितनी दर्दनाक है ये इज्ज़त जो जान तक लेलेती है । बाप अपने बेटे को भाई अपनी बहन को और एक बेटा अपनी माँ को मार देता है । सिर्फ समाज कि इज्ज़त के लिए । अक्सर इस अनार किलिंग कि शिकार स्त्रियों को होना पड़ता लेकिन लेकिन ऐसा क्यूँ ? क्या इज्ज़त पुरषों से नहीं होती ? लोग कहते है इस बदलते वक्त के साथ आज कि पीढ़ी बहुत तेजी से बदल रही है । रीती रिवाजों और संस्कृति को भूल कर ......पश्चमी सभ्यता कि तरफ बढ़ रहे है । ये हद तक सही भी है । लेकिन ये प्रेम विवाह या किसी से प्रेम करना ......ये सभ्यता तो सदियों चली आरही है ।मुझे तो इसमें कोई बदलाव नहीं नज़र आता . ये एक मानव प्रवृति है कोई इसे रोक नहीं सकता । सिर्फ पहरा लगया जा सकता है । आनर किलिंग में शामिल होने वाले लोग अक्सर अपने आप को बहुत प्रभावशाली मानते है और इज्ज़तदार भी । मुझे तो ऐसे लोग बिलकुल हारे और हतास हुए नज़र आते है ........किसी कि मुहब्बत या ज़िद के आगे इतना हार जाते है कि अंत में उसकी जान लेलते है और ऐसे में वो अपनी जीत समझते है । इस देश में ऐसे न जाने कितनी जाने जाती है । जहां मिडिया पहुँचती है वहां बात सामने आती है जहां नहीं पहुँचती वह ऐसी हत्या के बारे में किसी को कानो कानो तक ख़बर नहीं होती ........ठीक एक साल पहले ऐसे ही घटना हमारे गाँव से तकरीबन ३ कोष दूर एक घटना हुई जिसमें एक बाप ने अपनी बेटी को उस वक्त जहर दे दिया जब घर में कोई नहीं था न उसकी माँ और न उसके भाई बहन ......लड़की को जहर देने के लिए उस लड़के कि बाप ने लड़की के पिता को उकसाया था जिस लड़के से लड़की का कुछ सम्बन्ध था । दरिंदगी तो देखिये कोई कुछ समझ पाता तब तक उस लड़की को धरती कि गोंद में समाहित कर दिया गया था । और फिर सबकुछ शांत होगया किसी ने जुबान इसलिए नहीं खोली क्यूंकि सवाल इज्ज़त का था । किसी कि आत्मा को कष्ट दे कर मारना ये कहाँ का इन्साफ है । अपनी इज्ज़त के लिए अपनों का खून करना ये कहाँ कि बहादुरी है ।

May 12, 2010

क्या आज भी वो वैसा ही है ......

देवेश प्रताप

चाँद क्या तू मेरे महबूब का हाल बता देगा ।
अरसा
होगया उसके शहर में
मैंने कदम नहीं रखा ।

क्या वो वैसा ही है जैसे वर्षों पहले मैंने देखा था ।
या फिर इस नाटकीय दुनिया में ,
उसने
भी अपना रूप बदल लिया

ए चाँद तू उसकी अदाएं तो रोज देखता होगा

क्या
उसकी चंचलता आज भी वैसी है
जैसे पहले एक बच्चे की तरह
चंचल
मन से घुमा और रहा करती थी।
या फिर वक्त थपेडों ने उसके
जीने
का
सलीका बदल दिया ॥

क्या
आज भी वो सांझ को घर की

देहली
पर दिया जलाती है ।

या
फिर सांझ में दिया जलाने का
रिवाज मिटा दिया ॥

क्या
आज भी उसकी आँखों में

खुशियों
के मोती छलकते
है ।
या
फिर समय के चक्रव्यु ने

उन
मोतियों को गिरा दिया ॥



चाँद वो मिल जाये तो उससे कहना वो सख्स
जो वर्षों पहले तुम्हारी याद में रात भर
जागता था ,

आज
भी वो तुम्हारी तस्वीर को
आँखों में सजाकर रखा है
तुम्हारी याद में रोते रोते आँख से आंसू तो
सूख
गये
लेकिन सुर्ख आँखों से आज भी वो रोता है ॥

May 11, 2010

खेल के बाद क्या होगा ??



देवेश प्रताप


भारत देश की राजधानी दिल्ली कामनवेल्थ खेल के लिए एक दुल्हन की तरह सजाई जा रही है . चारो तरफ जोरो शोरो से काम चल रहा है कही ट्रैफिक समस्या हल करने के लिए फ्लाई ओवर बन रहे है तो कही दिल्ली में आये लोंगो को कही आने जाने में परेशानी न हो इस के लिए मेट्रो रेल सेवा भी लगभग तैयार हो चुकी है . खेल के लिए स्टेडियम बन रहे तो खिलाडियों के रहने के लिए आशियाँ . इन सभी कार्यो को पूरा करने के लिए जो हाथ दिन रात काम कर रहे है । वो है दूसरे शहर से आये मजदूर जो अपनी रोजी –रोटी के लिए अपने गांव –शहर को छोड़ कर दिल्ली को सजाने में जुटे हुए है . अब सवाल ये उठता है कि , जब ये सारे कार्य खत्म हो जायेंगे और जब दिल्ली पूरी तरह से सज – सवंर के तैयार हो जायेगी . तब ये मजदूर कहाँ जाएंगे क्या वो अपने शहर –गाँव के लिए लौट जाएंगे या फिर इसी दिल्ली में कोई नयी रोजी रोटी तलाशंगे , लेकिन नयी रोजी रोटी के लिए अवसर कहा से मिलेंगे , तब शायद इतने निर्माण कार्य नहीं होगा । जब निर्माण कार्य नहीं होंगे तो ये मेहनत कि रोटी तोड़ने वाले कहाँ जायंगे । मौजूदा स्थिति में दिल्ली में लाखों के तादाद में अलग –अलग राज्य से मजदूर आकर अपनी जीविका चला रहे है । इस तैयारी के सबसे बड़े हिस्सेदार के लिए क्या सरकार ने कुछ सोचा है , या इनके लिए कोई नयी योजना बनी हो जिससे इनकी जीविका बरकरार रहे । यदि न सोचा हो तो सरकार को इनके भविष्य के बारें में ज़रूर सोचना चाहिए । ताकि ये मेहनत करने वाले हाथ कभी रोटी तोड़ने से खाली न जाये ।

May 10, 2010

कुछ मीठे पल ......

देवेश प्रताप

आप सब सबसे पहले माफ़ी चाहूँगा ........जो कि इस बीच व्यस्तता के कारण कोई पोस्ट लिख पाया और ही कोई पोस्ट पढ़ पाया लेकिन अब फ्री हो गया हूँ तो आराम से सारी पोस्टें पढूंगा और अपने विचारों को भी प्रस्तुत करूँगा चलिए मै अब आप को बताता हूँ के एक हफ्ते कहाँ व्यस्त थे MASS COMMUNICATION कोर्स का ये आखरी साल चल रहा है जो लगभग पूरा होने वाला है तीन साल इस (ASMS) ASIAN SCHOOL OF MEDIA STUDIES . कॉलेज में कैसे बीत गये पता ही नहीं चला वैसे अच्छे पल बहुत जल्द ही आखरी पल हो जाते है . यदि सफ़र में हमसफ़र और मार्गदर्शक का साथ अच्छा मिल जाये तो फिर वक्त बीतने का पता नहीं चलता .
एक हफ्ते पहले हमारी शुरू हुई जो कि MULTI-CAMERA PRODUCTION इसमें तीन कैमरे का प्रयोग करते हुए कोई एक १० मिनट का कार्यकर्म बनाना था और सबसे मजेदार चीज़ थी कि कार्यकर्म के शूटिंग के दौरान कोई कट नहीं होना था वैसे जैसे LIVE कार्यकर्म में होता है हमारी पूरी क्लास इस PRODUCTION को लेकर उत्साहित थी तो पिछले सोमवार को PRODUCTION शुरू हुआ श्री गणेश मुझसे हुआ जो मेरे लिए उत्साह और डर दोनों था . त्साह इस लिए कि पहली PRODUCTION मेरी है . डर इस बात का कि पहली मेरी कहीं कुछ गडबड हो जाये . खैर सबकुछ बहुत अच्छा हुआ हमारे सहपाठी पुरे सहयोग के साथ जुटे हुए थे . इसी तरह से शुरू हुआ सिलसिला एक बाद एक करके सभी बच्चों का कार्यकर्म शूट होता गया . और जब शाम को शूट खत्म होती तो कैंटीन में आकार पार्टी करते जो कि बहुत मजेदार पल होता . इसी तरह से पूरे क्लास के बच्चों कि PRODUCTION त्म हुई . हमारी पूरी क्लास इसमें इस तरह जुट गये थे कि PRODUCTION त्म होने वाले पल ने ये अहसास दिला दिया कि हम सब कुछ ही दिनों में बिछड़ने वाले और अपने नए रास्ते पर चलने वाले है . इस मीठे से अनुभ को तस्वीरों में कैद कर रखा है . शायद आप लोग भी इस पल के हिस्से दार बने...... .

एक नज़र इधर भी

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