वो हर रोज एक जख्म दे जाते हैं
हम उन जख्मों के सहारे जिए जाते हैं ॥
मुझे कोरा कागज समझ कर
अपने दास्तानेब्याँ लिखते हैं ।
लिखते लिखते जब वो थक जाते हैं ।
कागज को टुकड़े टुकड़े कर के चले जाते हैं ॥
मुझे आइना समझ कर वो अपने
दुःख दर्द कहते है ,
आसुंओं कि बारिश को जब भी रोकने
कि कोशिश करता हूँ ।
जाने क्यूँ वो उस बारिश में
भीगना पसंद करते है॥
मैं साहिल कि तरह उनके आने का
इंतज़ार करता हूँ ,
वो लहर बन कर आते तो हैं ॥
पर चंद लम्हों में दूर
चले जाते हैं ॥
हम प्यार के मोती बटोरते रहे
वो उन मोतियों से खेलते रहे ॥