विकास पाण्डेय
बात तक़रीबन १६ साल पहले कि है, लेकिन आज भी नयी है । मेरी बूढ़ी आम्मा कहा करती थी कि ''बेटवा अच्छे बच्चो के साथ रहा करो,नेक बच्चो कि संगत करो। अच्छे कि संगत करोगे तो अच्छा बनोगे और बुरे के साथ में निसंदेह बुरा ही'' वो बात अलग है कि कमल के फूल कीचड़ में ही खिलते हैं और ना जाने कितने विषधर सांपो के बीच रहने पर भी चन्दन का पेड़ अपनी शीतलता नहीं खोता क्यों कि जो भी हम अपने बड़े बूढ़े से सीखते हैं वही करते है फिर चाहे वह पाप हो या पुण्य अच्छा हो या फिर बुरा ।
ऐसे कई उदाहण हैं, खैर मै अपने से ही शुरू करता हूँ मैंने सुना था कि ब्लॉग लिखने से क्रिएटिविटी में पंख लग जाते है ,और यहाँ आप सभी को देख कर अब ऐसा महसूस होता है कि ना सिर्फ पंख लग जाते हैं बल्कि उन पंखो में इतनी ताकत और ऊर्जा आ जाती है कि ब्लॉग के अनंत सागर में अपने लेखन कि अलग पहचान बनाने में सफल रहते हैं। शुरुवात में ब्लॉग पढ़ना शुरू किया और अब आप लोगों कि देखा देखी ही टेढ़ा मेढ़ा ही लेकिन लिखने का सिलसिला प्रारम्भ कर दिया है और ये सिलसिला यूँ ही नहीं थम रहा मेरे कई करीबी दोस्तों ने भी हमारा साथ देना शुरू कर दिया है और इसी नाव पर सवार हो गए हैं जिसमे आप और हम हैं ।
मै बचपन में अपने पड़ोस के बाबा को देखा करता था कि वो प्रत्तेक रविवार को कुएं के पास अपने सायकिल को धुला करते हैं ,उनके यहाँ से हमारी पुरानी वैमनस्य थी इस कारण चला चली भी रहती थी। उनकी देखा देखी मै भी अपनी २० इंच कि लाल सायकिल को कुए के उपर चढ़ा कर धुलता था। भावना तो ईर्ष्या कि ही थी लेकिन मेरा काम हो जाता था। और अब ऐसा लगता है कि ईर्ष्या में ही क्यों ना अगर देखा देखी पुण्य हो रहा हो जिससे स्वयं और समाज का हित हो रहा हो तो हो जाना चाहिए। आचार्य विनोवा भावे जी ने कहा है कि ''स्वयं के लिए कार्य करना बहुत ज़रूरी है,लेकिन उसका दायरा जितना बड़ा हो उतना ही समाज के लिए लाभकारी होता है'' ।
बात तक़रीबन १६ साल पहले कि है, लेकिन आज भी नयी है । मेरी बूढ़ी आम्मा कहा करती थी कि ''बेटवा अच्छे बच्चो के साथ रहा करो,नेक बच्चो कि संगत करो। अच्छे कि संगत करोगे तो अच्छा बनोगे और बुरे के साथ में निसंदेह बुरा ही'' वो बात अलग है कि कमल के फूल कीचड़ में ही खिलते हैं और ना जाने कितने विषधर सांपो के बीच रहने पर भी चन्दन का पेड़ अपनी शीतलता नहीं खोता क्यों कि जो भी हम अपने बड़े बूढ़े से सीखते हैं वही करते है फिर चाहे वह पाप हो या पुण्य अच्छा हो या फिर बुरा ।
ऐसे कई उदाहण हैं, खैर मै अपने से ही शुरू करता हूँ मैंने सुना था कि ब्लॉग लिखने से क्रिएटिविटी में पंख लग जाते है ,और यहाँ आप सभी को देख कर अब ऐसा महसूस होता है कि ना सिर्फ पंख लग जाते हैं बल्कि उन पंखो में इतनी ताकत और ऊर्जा आ जाती है कि ब्लॉग के अनंत सागर में अपने लेखन कि अलग पहचान बनाने में सफल रहते हैं। शुरुवात में ब्लॉग पढ़ना शुरू किया और अब आप लोगों कि देखा देखी ही टेढ़ा मेढ़ा ही लेकिन लिखने का सिलसिला प्रारम्भ कर दिया है और ये सिलसिला यूँ ही नहीं थम रहा मेरे कई करीबी दोस्तों ने भी हमारा साथ देना शुरू कर दिया है और इसी नाव पर सवार हो गए हैं जिसमे आप और हम हैं ।
मै बचपन में अपने पड़ोस के बाबा को देखा करता था कि वो प्रत्तेक रविवार को कुएं के पास अपने सायकिल को धुला करते हैं ,उनके यहाँ से हमारी पुरानी वैमनस्य थी इस कारण चला चली भी रहती थी। उनकी देखा देखी मै भी अपनी २० इंच कि लाल सायकिल को कुए के उपर चढ़ा कर धुलता था। भावना तो ईर्ष्या कि ही थी लेकिन मेरा काम हो जाता था। और अब ऐसा लगता है कि ईर्ष्या में ही क्यों ना अगर देखा देखी पुण्य हो रहा हो जिससे स्वयं और समाज का हित हो रहा हो तो हो जाना चाहिए। आचार्य विनोवा भावे जी ने कहा है कि ''स्वयं के लिए कार्य करना बहुत ज़रूरी है,लेकिन उसका दायरा जितना बड़ा हो उतना ही समाज के लिए लाभकारी होता है'' ।
7 comments:
स्वयं के लिए कार्य करना बहुत ज़रूरी है,लेकिन उसका दायरा जितना बड़ा हो उतना ही समाज के लिए लाभकारी होता है।
बिल्कुल सही कहा!!
स्वयं के लिए कार्य करना बहुत ज़रूरी है,लेकिन उसका दायरा जितना बड़ा हो उतना ही समाज के लिए लाभकारी होता है।
समहत हू भाई ।
आत्ममंथन के लिए अच्छी पोस्ट....शुक्रिया
sahi kaha aapne,par dusaron ke hita ke liye kiye jane wale kam ka maja kuchh or hai.
अपने हित में काम करना ज़रूरी है .. पर समाज, देश का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है ...
देवेश जी, आपके विचार इस लेख मे पड कर अच्छा लगा....बहुत अच्छी और प्रेरणादायी बात लिखी है आपने!!
रानीविशाल जी ....बहुत बहुत शुक्रिया अपना विचार प्रकट करने के लिए ......यह पोस्ट इसी ब्लॉग के सहयोगी ''विकास पाण्डेय '' ने लिखा है . .....बहुत बहुत आभार .
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