देवेश प्रताप
आज आधुनिकता के दौर में , सबसे ज़्यादा क्रांति आई तो वो संचार में , संचार के माध्यम धीरे धीरे अपने पैर पसारते गए जिसमें नई -नई तकनीक शामिल होती गयी । किसी भी ''वस्तु'' के बारें में लोगों तक जानकारी पहुँचाने का कार्य , संचार माध्यमों से शुरू हुआ , ''प्रचार '' कि उत्पति यही से हुई । यदि ''प्रचार'' जैसा शब्द न होता तो शायद बहुत कुछ न होता । आज के युग में किसी भी ''चीज़'' का प्रचार करना बहुत आसान हो गया है। कुछ वर्ष पहले यदि प्रचार टी.वी पर आया करते थे तो ये होता था कि कितनी जल्दी प्रचार ख़त्म हो क्यूंकि तब के प्रचार बहुत साधारण तरीके प्रस्तुत किये जाते थे , परन्तु जैसे -जैसे समय बदलता गया ......प्रचार में भी बदलाव आता गया और अब तो कुछ प्रचार ऐसे बन गए कि उन्हें देखने का मन बार बार करता है , किसी भी वस्तु का प्रचार आज के समय में सबसे ज्यादा स्त्रियाँ ही करती है । आकर्षण का केंद्र मानी जाने वाली नारी , किसी भी वास्तु का प्रचार कम, नारी का प्रचार ज्यादा होने लगा है , चलिए ये माना कि ...क्रीम , तेल ,शैम्पू इत्यादि वस्तुओं का प्रचार कोई स्त्री करें तो एक तुक बनता है , परन्तु किसी ....मोटरकार के टायर , सीमेंट , पान मसाला , इंजन के तेल , या पुरुष के अन्तःवस्त्र के प्रचार में एक कामुकता के अंदाज में किसी स्त्री कि क्या आवशयकता । आज के समय में ऐसे प्रचार टीवी या पेपर में देखने को मिलते है जिसमें साफ़ दिखाई देता है कि इस प्रचार में ''नारी'' के जिस्म का प्रचार किया जा रहा है .......मुझे तो ऐसे प्रचार बेतुके लगते हैं ।
आज - कल टीवी पर एक सीमेंट का प्रचार आता है ......प्रचार कुछ इस तरह से है '' एक लड़की (swim costume )पहन कर समन्दर से बहार आती है ....धीरे -धीरे जब वो स्क्रीन में एकदम समाहित होने को होती है .......तभी स्क्रीन पर एक सीमेंट का नाम लिख कर आता है और कुछ वाइस ओवर भी होता है ''.......मैं तो अभी तक इस प्रचार का मतलब नहीं समझ पाया कि उस लड़की और सीमेंट का क्या .........यदि आप लोगो ने ये प्रचार देखा हो ........और इसका कुछ मतलब समझा हो तो हमें अवश्य बतलायें ..........जिन्होंने न देखा हो तो कोई बात नहीं । .........आज के युग में ये अधिक सुनने को मिलता है कि लड़कियां - अब लड़कों से कदम से कदम मिला कर चल रही है ...........ये सुन कर अच्छा लगता है .......लेकिन ये भी सत्य है कही न कही ये कुंठित समाज उन्हें अपने चंगुल में फंसा कर रखा है ........आज किसी भी बड़ी संस्था में स्वागत द्वार (reception) पर स्त्रियाँ बैठी नजर आएँगी .........जो शोभा भी देता है ........लकिन कई जगह तो बेतुका लगता है .......जिन्हें ये लगता है किसी नारी के उपयोग से अपना कार्य सफल बना लेंगे तो वो सबसे ज्यादा कुंठित है। यदि आप उनके अंदर के हुनर या गुण का उपयोग करेंगे तो सफलता कदम चूमेगी .......''.क्यूंकि नारी तू सम्मान है .........इस सृष्टि कि गुमान है ''
आज आधुनिकता के दौर में , सबसे ज़्यादा क्रांति आई तो वो संचार में , संचार के माध्यम धीरे धीरे अपने पैर पसारते गए जिसमें नई -नई तकनीक शामिल होती गयी । किसी भी ''वस्तु'' के बारें में लोगों तक जानकारी पहुँचाने का कार्य , संचार माध्यमों से शुरू हुआ , ''प्रचार '' कि उत्पति यही से हुई । यदि ''प्रचार'' जैसा शब्द न होता तो शायद बहुत कुछ न होता । आज के युग में किसी भी ''चीज़'' का प्रचार करना बहुत आसान हो गया है। कुछ वर्ष पहले यदि प्रचार टी.वी पर आया करते थे तो ये होता था कि कितनी जल्दी प्रचार ख़त्म हो क्यूंकि तब के प्रचार बहुत साधारण तरीके प्रस्तुत किये जाते थे , परन्तु जैसे -जैसे समय बदलता गया ......प्रचार में भी बदलाव आता गया और अब तो कुछ प्रचार ऐसे बन गए कि उन्हें देखने का मन बार बार करता है , किसी भी वस्तु का प्रचार आज के समय में सबसे ज्यादा स्त्रियाँ ही करती है । आकर्षण का केंद्र मानी जाने वाली नारी , किसी भी वास्तु का प्रचार कम, नारी का प्रचार ज्यादा होने लगा है , चलिए ये माना कि ...क्रीम , तेल ,शैम्पू इत्यादि वस्तुओं का प्रचार कोई स्त्री करें तो एक तुक बनता है , परन्तु किसी ....मोटरकार के टायर , सीमेंट , पान मसाला , इंजन के तेल , या पुरुष के अन्तःवस्त्र के प्रचार में एक कामुकता के अंदाज में किसी स्त्री कि क्या आवशयकता । आज के समय में ऐसे प्रचार टीवी या पेपर में देखने को मिलते है जिसमें साफ़ दिखाई देता है कि इस प्रचार में ''नारी'' के जिस्म का प्रचार किया जा रहा है .......मुझे तो ऐसे प्रचार बेतुके लगते हैं ।
आज - कल टीवी पर एक सीमेंट का प्रचार आता है ......प्रचार कुछ इस तरह से है '' एक लड़की (swim costume )पहन कर समन्दर से बहार आती है ....धीरे -धीरे जब वो स्क्रीन में एकदम समाहित होने को होती है .......तभी स्क्रीन पर एक सीमेंट का नाम लिख कर आता है और कुछ वाइस ओवर भी होता है ''.......मैं तो अभी तक इस प्रचार का मतलब नहीं समझ पाया कि उस लड़की और सीमेंट का क्या .........यदि आप लोगो ने ये प्रचार देखा हो ........और इसका कुछ मतलब समझा हो तो हमें अवश्य बतलायें ..........जिन्होंने न देखा हो तो कोई बात नहीं । .........आज के युग में ये अधिक सुनने को मिलता है कि लड़कियां - अब लड़कों से कदम से कदम मिला कर चल रही है ...........ये सुन कर अच्छा लगता है .......लेकिन ये भी सत्य है कही न कही ये कुंठित समाज उन्हें अपने चंगुल में फंसा कर रखा है ........आज किसी भी बड़ी संस्था में स्वागत द्वार (reception) पर स्त्रियाँ बैठी नजर आएँगी .........जो शोभा भी देता है ........लकिन कई जगह तो बेतुका लगता है .......जिन्हें ये लगता है किसी नारी के उपयोग से अपना कार्य सफल बना लेंगे तो वो सबसे ज्यादा कुंठित है। यदि आप उनके अंदर के हुनर या गुण का उपयोग करेंगे तो सफलता कदम चूमेगी .......''.क्यूंकि नारी तू सम्मान है .........इस सृष्टि कि गुमान है ''
18 comments:
अगर वाकई यह सब खराब है तो इसका प्रतिकार स्वयं स्त्री ही क्यों नहीं करती? बाजार को दोष कब तक और कहां तक देते रहेंगे?
बहुत सही लिखा है आपने देवेश भाई , लेकिन आधुनिक नारी इसे विकास मानती है ।
ज्ञानवर्धक रचना
आभार
"क्यूंकि नारी तू सम्मान है .........इस सृष्टि कि गुमान है"
baat to hai sahi.
par ladkiyo ne suni nahi...
देवेश प्रताप जी आपका आपका हार्दिक स्वागत है!आपके उत्साहवर्धन का मै आभारी हूँ!
वैसे तो हम एक-दुसरे को पहचानते नहीं मगर ऐसा लगता है जान जरुर गए है!
एक बार फिर धन्यवाद है जी!
कुंवर जी,
बहुत सही लिखा है आपने देवेश भाई
विज्ञापन में तुक नहीं, तुक्के चलते है. आपका ध्यान खिंचने के लिए महिला रखी जाती है. समझना सरल है.
गलत क्या है? क्या कोई जबरदस्ती की जाती है जो गलत हो.
ध्यानाकर्षण ही विज्ञापन का सार तथ्य है, चाहे जैसे भी हो!
Acchi post lagi lekin sahi yahi hai ki vigyaapan me sabase bada prayaad dhyan aakrshit karana hi hota hai jiska yah saral aur safal tarika hai...fir aise kese prastut kiya jaata hai kese dekha jata hai yah logo ki soch ke anusaar badal jata hai!
" नारी तुम केवल श्रद्धा हो " या " अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी " जैसी पंक्तियाँ इतिहास की बातें हो गयीं. आज नारी "शो पीस" के अवतार में दिखाई देती है. मीडिया का एक सूत्र है " जो दिखता है वो बिकता है". और ऐसे में नारी देह से बेहतर क्या होगा जिसे हर कोई देखना चाहता है- आँखें फाड़कर या नज़रें चुराकर. मतलब और समानता ढूँढने की कोशिश की कोशिश की तो "ढूंढते रह जाओगे."
देवेश बिलकुल सही लिखा है आज बाज़ार्वाद मे नारी खुद भी अपनी गरिमा भूल गयी है। पैसे के लिये क्या क्या हो रहा है देख कर सिर शर्म से झुक जाता है। जब तक नारी इसका विरोध नही करेगी तब तक ये बाज़ार उसका फायदा उठाता रहेगाधोली की शुभकामनायें
dewesh ji ! sahmat aapse ..
बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है।विचारणीय।
जब तक नारी स्वयं प्रतिकार नहीं करती...तब तक कुछ नहीं होने वाला !
sahi likha hai bhai...
bht gazab likha hai devesh bhai yeh sach hai yaar
....प्रभावशाली अभिव्यक्ति!!
sahi kahte ho vigyapankartaon ko is bat par vichar karna chahiye.. wo cement k ad k board b lage hai bhai sadko par.. cement k sath ardhnagn ladki ka koi tuk nahi banta.. uska cement koi mat lagana kyoki ladkiyon ka majbooti or tikaupan se koi link ni hai to cement k sat kyo .. objection hai
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