February 10, 2010

ट्रेन में सफ़र करता बचपन ......

देवेश प्रताप

३-४ दिन पहले गाँव जाना हुआ था । दिल्ली आने के लिए प्रतापगढ़ स्टेशन से ट्रेन पर बैठे .....स्टेशन को विदा करते हुए ट्रेन आगे बढ़ी .....थोड़ी देर बाद एक सात-आठ साल का बच्चा आया जिसके हाथ में झाड़ू थी , वो नन्हा फरिस्ता ऐसा लग रहा था की उपर वाले ने ख़ुद उसे इस दुनिया की गंदगी साफ़ करने के लिए भेजा है , आँखों में एक आश और चेहरे पर मासूमियत साफ़ झलक रही थी । वो ट्रेन के कम्पार्टमेंट की सफाई इस तरह से करने में जुट गया जैसे रेलवे का सफाईकर्मी हो ,और ममता बनर्जी(वर्तमान रेलवे मंत्री ) ने ख़ुद उसकी नौकरी दिलाई हो , सफाई करने के बाद लोगो से अपना मेहनताना मांगने के लिए हाथ बढाता , कुछ लोग दया दृष्टी दिखाते हुए ..एक रुपया निकालते और उस बच्चे के हाथ में दे देते और कुछ लोग इस तरह बुत बन जाते जैसे कोई पुतला बैठा हो उसे कुछ दिखाई और सुनाई नहीं देता । ट्रेन और बच्चे में एक समानता नज़र आई ......ट्रेन अपनी मंजिल के लिए सफ़र कर रही थी और वो बच्चा अपने बचपन को जीने के लिए सफ़र कर रहा था । ऐसे नजाने कितने मासूम अपनी ज़िन्दगी के लिए सफ़र कर रहे है । इन बच्चों के लिए कहने को तो बहुत से N.G.O (non government organization) और कई तरह की सरकारी संस्था काम करती है । लेकिन इन सब संस्थाओ का असर कम ही दिखाई देता है .

12 comments:

Kulwant Happy said...

ऐसे नजारे हर रेल गाड़ी में मिलते हैं। आपकी चिंता बिल्कुल सही है, लेकिन इसको दूर करने के लिए सरकार या फिर आम नागरिकों को आना होगा..जो बुत्त बनकर रेल गाड़ी में बैठे मिलते हैं।

Parul kanani said...

agree with happy ji :)

Narendra Vyas said...

आपके विचारों से पूणतः सहमत हूं!!
आज ऐसे नजारे आम हो गये हं,
भावविहीन इंसान हो गये है।
अब क्या बात करें औरं की,
हम तो खुद से पशेमान हो गये हैं।
......बहुत प्रभावित किया आफ संस्मरण ने। आभार!!

Udan Tashtari said...

सही कह रहे हैं..अभी और एन जी ओ आने होंगे. साथ ही कुलवंत जी कहना सही है..आम नागरिकों को भी आगे आना होगा.

रानीविशाल said...

आप क दर्द समझ्मे आता है, लेकिन सभी श्रद्धेय से माफ़ी चहति हू.....देश हमरा है, हमरे घर कि तरह हि है! यदि अगर घर क कोइ स्दस्य जरा भी तकलीफ़ मे होता है तो हम भागे भागे जा मदद करते है! तो यहा NGOs का रस्ता क्यो देखे??
अगर हर एक नगरिक मन मे कुच इस तरह क सन्कल्प धर ले तो ऐसे द्रश्य कम हि दिखेगे!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

देवेन्द्र पाण्डेय said...

.ट्रेन अपनी मंजिल के लिए सफ़र कर रही थी और वो बच्चा अपने बचपन को जीने के लिए सफ़र कर रहा था
....इस पंक्ति में दम है.

Apanatva said...

pooree tour pay happy jee se sahmat hai.hum sabhee ka uttardayitv banata hai jagrookata lana hai jan - jan me........

Anonymous said...

aapakee ise umr me soch kee disha par naaz hai......agar yuve peedee satark hai to fir bhavishy
ujval hee hai Bharat ka.........

Anonymous said...
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प्रज्ञा पाण्डेय said...

sahi kaha apne
in bachho ko dekh
kr lagta hai ki kya
inki sudh lene vala is duniya
me koi nahi hai

कविता रावत said...

Bhavpurn vastvik chitran karta sansmaran bahut achha laga.
Mahashivratri ki shubhkamnayen...

संजय भास्‍कर said...

Mahashivratri ki shubhkamnayen...

एक नज़र इधर भी

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