January 19, 2010

दोस्ती @ २०रु प्रति महिना........................





दोस्ती दुनिया का शायद सबसे भरोसेमंद शब्द हैं। सच्चा दोस्त बनाने में हमें कितना टाइम लगता है, शायद १ दिन, १ महिना, १ साल या फिर कई बार हमें जीवन भर ऐसे   दोस्त की तलाश रहती है जिस पर पूरी तरह से भरोसा किया जा सके,  जो दोस्ती के हर आयाम पर खरा उतर सके।

लेकिन आज मुझे सच्चे दोस्त पाने का १ बहुत ही अच्छा ऑफर मिला वो भी बिना किसी मेहनत के।
हुआ यु की आज दोपहर मैंने जैसे ही अपना लंच खत्म किया और सोचा की १ वेबसाइट अपडेट कर दू , जो की बहुत ही जरुरी थी क्यूंकि client सुबह से कई दफा कॉल कर चूका था, मैं पेशे से वेबसाईट डिजाईनर हूँ।

मैंने अपना कंप्यूटर ऑन किया और पूरा मूड बना के काम में जुट गया, तभी मेरे मोबाइल में १ अनजान नंबर से कॉल आई ............ १ बार तो मूड काफी ख़राब हुआ और गुस्सा भी आया की काम के वक़्त किसकी कॉल आ गई, फिर मुझे लगा की शायद किसी client या किसी मित्र की भी हो सकती है। मैंने कॉल उठा ली। सामने से मादक आवाज में १ महिला की रेकॉर्डेड कॉल चालू हो गई। उस कॉल में मुझे जो ऑफर मिला वो कुछ यूँ था :-
"अकेले हो, दोस्ती करोगे मेरे साथ. मैं भी बहुत अकेली हूँ, बहुत तनहा हूँ, मुझे अपना सच्चा दोस्त समझो और मेरा साथ पाने के लिए १ दबाओ और सिर्फ २० रु में पाओ मुझ जैसे और भी दोस्तों का साथ पुरे महीने के लिए । क्या हुआ, नहीं बनोगे मेरे तन्हाई के साथी, सिर्फ २० रु प्रति महिना। "

फिर कॉल कट दी मैंने और सोचा कि कितने गिरे दिन आ गए हैं अब दोस्ती महीने के हिसाब से करने का ऑफर आ रहा हैं।
मैंने ये पोस्ट इसलिए लिखी है क्यूंकि मुझे उस वक़्त ये ख्याल आया   कि कहीं अगर ये कॉल मेरे सिवा मेरे किसी छोटे भाई ने या किसी छोटे बच्चे ने उठाई होती तो उसके दिमाग पर क्या असर होता इसका। क्या सिख मिलती उसको जीवन में कि अब दोस्ती भी पैसों में मिलने लगी वो भी साल में जिस महीने में चाहो लो दोस्ती और जिस महीने में ना मान करे ना लो।
"और यही कॉल कहीं किसी बुजुर्ग ने उठाई होती तो वो क्या समझते कि आज का हमारा आधुनिक समाज कहाँ जा रहा है क्या हम आधुनिकता कि दौड़ में अपने असली परिवेश को कहीं खो दिया है. आज के इस आधुनिक युग में संवेदनाओ का कही कोई स्थान नहीं रह गया है। "
आज हमारे देश में हर सेल्लुलर कंपनी ऐसे भद्दी हरकत कर रही है। इनको किसी के व्यक्तिगत  जीवन से कोई मतलब नहीं है।
अगर हम इनकी ऐसे हरकतों की शिकायत भी करते हैं, तो हमको सलाह दी जाती है की हम डी न डी यानी डू नोट डीस्त्र्रब का प्रयोग करे।  अगर हम "डी. न. डी. " do not disturb सेवा का उपयोग भी  करना चाहे तो, उसको इस तरह से बनाया गया है कि "डी. न. डी. " लागू होने में ४५ दिन का वक़्त लग जाता है, कुल मिला कर ये समझ लिजिये कि जो इंसान थोडा जानकार है उसको तो ४५ दिन में छुटकारा मिल सकता है? लेकिन जिसको इस सुविधा कि जानकारी नहीं है उसको तो झेलना पड़ेगा ही।
पैसे कमाने के लिए माहोल को बिगड़ना और हर हद को पार कर देना नैतिकता के खिलफ है। लेकिन ऐसा करने वालो के सर पर हमारे देश कि सरकार का हाँथ होता है।
ऐसे में एक आम आदमी ऐसे चीजो के खिलफ सिर्फ रेकुएस्ट ही कर सकता है बाकी उसे हाँथ में कुछ नहीं है।

एक नज़र इधर भी

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