देवेश प्रताप
इंसानी ज़िन्दगी में सबसे दिलचस्प सफ़र बचपन के बाद शुरू होता है यानि जब युवा अवस्था में कदम रखता है । जब बचपन अपनी विदाई की ओर होता है तो आने वाला युवावस्था सफ़र के लिए मन में एक रोमांच भरा होता है ।यही से जिंदगी की मंजिल की तरफ जाने का रास्ता तय करना होता है । भावानों का समन्दर भी इसी उम्र में हिचकोरे लेता है । रगों में ऐसा खून दौड़ता है जो सिर्फ जीतना जानता है । दुनिया जीत लेने की उम्मीद इस उम्र हर किसी को होती है क्यूंकि दुनिया को जानने का सिलसिला जो यही से शुरू होता । इस उम्र जोश इस तरह से पनपता है जैसे आम के पेड़ में पहेली बार बौर लगता है । इस उम्र में हर पल पे इतनी फिसलन मिलती है के चूकने के देर हो और दुनिया बदल जाती है । कुछ कर दिखाने और दुनिया को बदल डालने का ज़ज्बा इसी उम्र में इस कद्र होता है जैसे समन्दर की चौड़ाई और आस्मां की उचाई हाथो और पैरो के बराबर हो । इस उम्र में प्रकृति ऐसी उर्जा शायद इसलिए देती है के आगे की ज़िन्दगी को एक खूबसुरत सा मक़ाम मिल सके ।
इंसानी ज़िन्दगी में सबसे दिलचस्प सफ़र बचपन के बाद शुरू होता है यानि जब युवा अवस्था में कदम रखता है । जब बचपन अपनी विदाई की ओर होता है तो आने वाला युवावस्था सफ़र के लिए मन में एक रोमांच भरा होता है ।यही से जिंदगी की मंजिल की तरफ जाने का रास्ता तय करना होता है । भावानों का समन्दर भी इसी उम्र में हिचकोरे लेता है । रगों में ऐसा खून दौड़ता है जो सिर्फ जीतना जानता है । दुनिया जीत लेने की उम्मीद इस उम्र हर किसी को होती है क्यूंकि दुनिया को जानने का सिलसिला जो यही से शुरू होता । इस उम्र जोश इस तरह से पनपता है जैसे आम के पेड़ में पहेली बार बौर लगता है । इस उम्र में हर पल पे इतनी फिसलन मिलती है के चूकने के देर हो और दुनिया बदल जाती है । कुछ कर दिखाने और दुनिया को बदल डालने का ज़ज्बा इसी उम्र में इस कद्र होता है जैसे समन्दर की चौड़ाई और आस्मां की उचाई हाथो और पैरो के बराबर हो । इस उम्र में प्रकृति ऐसी उर्जा शायद इसलिए देती है के आगे की ज़िन्दगी को एक खूबसुरत सा मक़ाम मिल सके ।
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