January 16, 2010

क्या इच्छा से परे है .......परीक्षा ?

देवेश प्रताप
हाल ही में महाराष्ट्र राज्य के अंदर बच्चो के आत्महत्या करने के कई मामले सामने आये । ये तो ताज़ा ख़बरे है महाराष्ट्र की लेकिन ऐसे मामले पुरे भारत देश में लिए जाये तो कई बच्चो ने आत्महत्या को अंजाम दिया । आखिर इस तरह कल के भविष्य क्यों वो अपने आपको वर्तमान में ही नष्ट कर दे रहे है । अक्सर ऐसी घटनाएं परीक्षा शुरू होने के पहले या फिर परीक्षा का परिडाम आने के बाद होती है और कारण भी शायद यही होता के मानसिक तनाव के कारण ये घटना हुई । ''परीक्षा'' इस शब्द को शायद आपने आप को भी व्यक्त करने में परीक्षा देनी पड़ती है । अभिभावक अपने बच्चो से यही आशा करते है की '' मेरा बच्चा टॉप करें '' किसी भी तरह से क्यूंकि समाज उन्हें ये साबित करना है की हम अपने बच्चे को सबसे उच्च शिक्षा दे रहे है और मेरा बच्चा सबसे तेज़ है पढने में । खैर ये तो सभी माँ- बाप का सपना होता है की उसके आँखों का तारा ऐसे चमके के उसके चमकने के रौशनी पूरे संसार पर पड़े ।
मेरे साथ भी ऐसा कुछ था जब भी परीक्षा नजदीक आती मेरे घर वाले कहते '' इस बार अच्छे अंक आने चाहेयी " मै बोलता था ठीक है इस बार कोशिश करूँगा । लेकिन मै ख़ुद आपने आप को जनता था के मेरे अच्छे अंक नहीं आयंगे क्यूंकि कोई भी विषय मै रट नहीं पाता था । मै उत्तर वही लिखता था जो मुझे समझ आता था और शिक्षक भी कसम खाए रहेते थे । की जो भी अपने मन से उत्तर लिखेगा उसे कम अंक देंगे चाहे उत्तर उसी तात्पर्य पर हो ।
भारत देश की शिक्षा प्रणाली ज्ञान की आपेक्षा अंक पर ज्यादा महत्व देती है । इसी बात को ध्यान में रखते हुए अभिभावक से लेकर शिक्षक तक केवल बच्चो के कान में एक ही शब्द डालते है के ......इस बार अच्छे प्रतिशत लाना है और पूरा कॉलेज टॉप करना है । बच्चो के नाजुक से कंधो पर आशाओ का ऐसा बोझ लाद दिया जाता है जो बेचारे नन्हे से कंधे उठाने में असमर्थ हो जाते है ।

1 comment:

vandana said...

ek saarhak vichar rakha hai...

badiya sandesh hai abhi-bhavko ke liye...


nice thought :)

एक नज़र इधर भी

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