
अक्सर मन और दिमाग में कुछ विचार चलते रहते है...इन्ही विचारो को शब्द रुपी माला में पिरोने का प्रयास...धन्यवाद
December 15, 2010
देश कौन चला रहा है सरकार य उद्धोगपति ?????

December 8, 2010
मन में सवालों के हिलोरे

December 7, 2010
आप लोंगो से बिछड़े हुए ३ महीने हो गये
क्या कहूँ , क्या लिखूं कुछ समझ नहीं आरहा | आप लोंगो से बिछड़े हुए ३ महीने हो गये | आज ऐसा लग रहा है दोबारा इस ब्लॉग की दुनिया में जन्म हो रहा है | इतने दिनों में ये तो तय था आप सबको बहुत

August 26, 2010
इस रचना में तुम हो ......
तुम्हे देखा है कही इन वादियों के
बीच
फूलों के जैसे .......हंसी हैं , सुरीली हवा की जैसी
चंचलता ,
तुम वही हो जिसे मैंने सपनो में ढूंढा था
तुम इन फिज़ाओं में कहा चली जाती
हो ,
बैठ कर मै , तुम्हारा रस्ता संजोता हूँ
तुम्हरी झलक पाने के लिए आस्मां
ऊपर से निहारता है .......
तुम्हारे पायल की खनक
सुनकर दिल के तार
बजने लगते है ।
तुम्हारी मीठी सी आवाज़ जब कानो
में जाती है ,
इस जहां की हर आवाज़ फीकी लगने
लगती है ।
इतनी सरलता , इतनी सादगी , इतनी
सुन्दरता ......देख कर प्रकृति भी
खुशनुमा हो जाती है ।
मै तो कायल रहता हूँ तुम्हारी
इस अदायगी पर .....तुम्हे देख कर
मन्त्र मुग्ध हो जाता हूँ ।
ये रचना किसी के लिए समर्पित है ..............शब्द शायद कमजोर होंगे ......लेकिन भाव वही हैं ।
August 15, 2010
जय हिंद , जय भारत
स्वतंत्रता दिवस ६४ वें वर्षगाँठ को मना रहे है । ये दिन हम सभी भारत वासियों के लिए बहुत ही महतवपूर्ण दिन होता है । आप सब को स्वतंत्रता दिवस कि ढेर सारी शुभकामनाएं.... इस अवसर पर एक छोटी सी रचना .......
हम आज़ाद भारत में अपनी साँस
ले रहे है ।
जिसने लगा दी अपनी जिंदगी
इस आज़ादी के लिए
उनके इस कुर्बानी को
यूँ न जाया करो ,
उनके इस बलिदान का
कुछ तो ख्याल करो ।
भ्रस्टाचारी , घूस खोरी ,
मार काट न करो ।
भारत कि गरिमा को
यूँ ही न तार -तार करो ।
खून पसीने का बीज जो
मिटटी में उगा रहा है ,
उसकी मेहनत का
कुछ तो कद्र करो ।
क्षेत्रवाद , जातीवाद ,भाषावाद
का नशा न करो ,
देश कि अखंडता
को यूँ न खंडित करो ।
रहे ख्याल इतना हे ! देशवासियों
जय हिंद , जय भारत ।
August 4, 2010
पतंग...........

एक धागे में बंधी
मै तो उड़ चली थी,
स्वछन्द आस्मां में
मै लेहरा रही थी,
आस्मां भी बाहें
फैलाये मेरा इंतज़ार
कर रहा था ।
मै भी झूम झूम कर
आगे बढ़ रही थी
मन में एक विश्वास
था , एक डोर के
सहारे अम्बर
को छू लेने का
जज्बा था॥
लेकिन ये क्या , किस से देखा
नहीं गया , यूँ मेरा
गगन में लहराना ,
मेरी तम्मनाओ के पंख
किसने एक पल में
काट दिए ,
क्यूँ काट दिया मेरी उस विश्वास
कि डोर को जिसके सहारे
मै आस्मां को छूना चाहती थी ,
मेरी डोर को काटने वाले
को सुकून मिल गया होगा ,
मुझे आस्मां में भटकते हुए
और ज़मीं पर गिरते हुए
देख कर ॥
August 2, 2010
ये भी दिल्ली का एक हिस्सा है ????
August 1, 2010
ये दोस्ती .....
देवेश प्रताप

July 31, 2010
जाने क्यूँ इतना याद आते हो .....

बिन बरसात के आज भी तुम
बरस जाते हो
जाने क्यूँ इतना याद आते हो ।
सावन के झूलों की तरह ,
आज भी मन को झुला जाते हो
जाने क्यूँ इतना याद आते हो ।
तुम यूँ चले तो गए मेरी दुनिया से दूर
इन आँखों से दूर कैसे जाओगे
आज भी इन नैनों में आंसू बन
कर छलक जाते हो ,
जाने क्यूँ इतना याद आते हो ॥
वादों की लकीरों को तुम पार
कर के चले गए ,
मन की लकीरों को कैसे
पार कर पाओगे ।
दिल की गली से यूँ ही
गुजर जाते हो
जाने क्यूँ इतना याद आते हो ॥
July 30, 2010
ये साहब कब आयेंगे समय पर .........
सरकारी दफ्तर में किसी भी काम को लेट लतीफ़ करने का एक चलन बनगया है । आप कितनी भी

हम लोग अन्दर गए और magistrate से बात किये .......उन्होंने कहा ''हो जायेगा और जिस डेट को आप लोग चाह रहे लघ भाग उसे डेट को अनुमति मिल जाएगी '' ........मुन्सी ने फिर प्रार्थना पत्र पर सारी फोर्मिल्टी अदा किया और हाथो हाथ हम लोग को लेटर हाथ में मिल गया ......और उस प्रार्थना पत्र कि फोटो कॉपी और पांच जगह पर देना था .......सबसे पहले हम लोग ग्रेअटर नॉएडा गए entatainment office वहाँ पहुचने पर पाता चला कि 11.30 तक उनका कोई अता पता नहीं .....एक कर्मचारी से जब हमने पूछा ''कि कब तक आयेंगे'' .......तो उन्होंने कहा '' बड़े साहब है कब आये न आये इसका कोई भोरोसा नहीं '' हमने सोचा वाह क्या बात है ......इंसान कि फितरत तो देखिये कुर्सी निचित है इसलिए उन्हें अब किसी कि भी फ़िक्र नहीं । .......वहां से लौटने के बाद नॉएडा सेक्टर 14 gaye 'S.P traffic के पास ...लगभग उस समय वक्त हुआ रहा होगा 12.30 ..उनके भी अभी तक कोई अता - पता नहीं । इसी तरह 'यस पि सिटी , नॉएडा ऑथोरिटी ऑफिसर .....किसी का भी दर्शन नहीं था । ये तो एक दिन का हाल, जो हम लोंगो ने देखा । ऐसे न जाने कितने लोग रोजाना परेशान होते होंगे और ये अफसर तो सोचते होंगे हम तो अब कुर्सी पर है अब तो वही होगा जो हम चाहेंगे । केवल सिटी magistrate के अलवा को अल अफसर अपने दफ्तर पर मौजूद नहीं मिला। ज़रा सोचिये ये सारे अफसर समय के बाध्य होते तो सब के सब अपने दफ्तर में मौजूद होते तो हम लोग का काम एक ही दिन में हो जाता ।
July 29, 2010
देखते है निष्कर्ष क्या होता है .......
एक हफ्फ्ते इलाहबाद में खूब मुज मस्ती के साथ फिल्म शूट किया .........मै विकास , प्रांकुर दीक्षित .......और इलाहाबाद से और दो मित्र शशिकांत और सौरभ ........हम सब मिलकर फिल्म शूट किये । अब देखते है निष्कर्ष क्या निकलता है फिल्म एडिट करने के बाद ............कुछ तस्वीरें ....
June 30, 2010
हम खिलाते है तभी वह खाते हैं......
''दिल्ली पुलिस आपकी सेवा में सदेव तत्पर्य'' ये लाइन अक्सर आपको दिल्ली पुलिस कि गाड़ी में लिखी हुई मिलेगी ......मुझे लगता हैं इसी के ठीक नीचे इनका एक रेट लिस्ट भी लगा देना चाहिए ..कि कौन से काम के लिए कितना पैसा देकर जुर्म मुक्त हुआ जा सकता है ....जिससे लोंगो को और पुलिस वालो को भी आसानी हो और बेचारे पुलिस वालो को भी दिक्कत न आये ......जो की कोई भी मन मानी रेट दे कर चला जाता है । ये पुलिस वालों के हित कि बात है ....लेकिन सवाल ये है कि भली बातों पर ध्यान कहा दिया जाता हैं ।
वैसे ध्यान देने वाली बात ये हैं ......कि हम खिलाते है तभी वह खाते हैं ......हम ख़ुद कानून का उल्लंघन करते है और फिर जब गिरेबान पर शिकंजा कसा जाता है .....तो उससे बचने के लिए क़ानून को खरीदने का पूरा प्रयास करते हैं ..........''गलती उनमें भी है और गलती हम में भी है ''
June 26, 2010
लहर कि तड़प साहिल के लिए ........
देवेश प्रताप
आज साहिल उदास हैं
क्यूंकि लहर उससे मिलने नहीं आई,
लहर भी मजबूर हैं समंदर
के गिरफ्त में जो हैं,
साहिल तो बैठ कर लहर
के आने का इंतज़ार करता है,
और लहर भी हर पल समंदर
के गिरफ्त से निकल कर ,
बड़े चाहत के साथ साहिल
से मिलने आती है॥
और साहिल को पाकर उसके
आगोश में खो जाती है
इस बेइन्तेहा प्यार को देख कर ......
साहिल ने भी समंदर के बगल घर बना लिया
और लहर के एक मिलन के लिए
बैठ कर इंतज़ार करने लगा ,
लहर भी इस प्यार को पाने के लिए
अपने आपको हमेशा समंदर के गिरफ्त
से छुडा कर साहिल से मिलने चली आती है॥
वाह!!! क्या प्यार है .....लहर और साहिल का जवाब
नहीं इस प्यार का ..........
लेकिन आज लहर मिलने क्यूँ नहीं आई
“कही किसी इंसान ने समंदर को उसकी इज्ज़त की याद दिलाकर लहर को दफ़न तो नहीं करा दिया .......क्यूंकि इंसान से किसी का बेइंतहा प्यार देखा नहीं जाता”
June 21, 2010
बृहस्पति दर्शन(भारतवर्ष का एक मात्र सिध्य्पीठ मंदिर)
कॉलेज के जीवन के अंतिम पड़ाव पर हम आ गए हैं,जहाँ हम सभी छात्रों को एक-एक डाकूमेंट्री फिल्म बनानी होती है। यह सभी के लिए अनिवार्य होता है। डाकूमेंट्री फिल्म बनाने का मुख्य उद्देश्य किसी निश्चित विषय के बारे में लोगों को इन्फोर्म करना एवं एजुकेट करना होता है। यहाँ मुझे बताते हुए बहुत प्रसन्नता हो रही है कि अभी दो दिन पहले मेरे एक सहपाठी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित बृहस्पति देव जी पर डाकूमेंट्री बनाने के लिए हमे मेरठ ले गए। जहाँ हमें पता चला की यह बृहस्पति देव जी का मंदिर भारतवर्ष में एक मात्र सिध्य्पीथ मंदिर है।यहाँ हर बृहस्पतिवार को सैकड़ो श्रद्धालू मनोकामना दीप जलाकर
अपना मनोरथ पूरा करते हैं।
हम लोगों ने भी एक पंथ दो काज किये और शूटिंग के साथ साथ मनोकामना कलावा भी बंधवाये. इस विषय पर पोस्ट लिखने का सिर्फ एक कारण है,आप को इस जानकारी से अवगत कराना ,हो सकता है आपको पता हो लेकिन मुझे लगता है की अगर ६०% लोगों को भी यदि नहीं पता होगा तो मेरे मित्र की और हमारी डाकूमेंट्री फिल्म बनाने का मकसद पूरा हो जायेगा । खैर आपके लिए मैंने अपने स्टिल कैमरे से बृहस्पति देव जी के कुछ मनमोहक दृश्य कैद कर लाया हूँ।मुझे विश्वास है की बृहस्पति देव जी के दर्शन से आपके जीवन में सुख,शांति, एवं समृधी आएगी।
अब मै आपसे एक आग्रह करता हूँ कि यदि आपके आस पड़ोस कोई ऐसी चीज़ हो ,कोई घटना घटी हो, और आपको लगता है कि इस विषय में और भी लोगों को जागरूक करना चाहिए,तो आप कृपया मुझे बताइए,क्यों कि फिल्म्स मानव अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। सभी विषयों पर बनाना सम्भव न होगा लेकिन जिस टॉपिक पर मेरे सभी संसाधन ठीक ठाक होंगे उस पर मै ज़रूर डाकूमेंट्री बनाऊंगा ,बस आपकी मदत कि ज़रूरत है ।