मैं जिस बात का ज़िक्र आज कर रही हूँ वो न तो किसी विशेष personality से है और न ही किसी व्यक्ति विशेष से . बस एक ऐसा एहसास जो मुझे अक्सर होता है जब भी मैं किसी के अंदर कोई कला देखती हूँ और उसे अभावों कि ज़िन्दगी जीते हुए देखती हूँ .
मैं ‘Sapna jain’, just on the way to establish myself as a reputated & well known designer. मैं अपने innovation, अपने creation को लोगों तक पहुँचाने कि कोशिश करती हु । कहीं कामयाब होती हूँ तो कही असफल भी । जब कामयाब होती हूँ तो संतुष्टि के साथ एक एहसास होता है कि “हाँ मैं कुछ हु ”. मेरे पास शिक्षा है , एक परिवार है , और मेरे घर वालों का साथ भी , लेकिन दुःख उन्हें देख कर ज़्यादा होता है जिन्हें ये सब नहीं मिला ….उनके पास है तो बस उनकी कला , वो भी बहुत सिमटा हुआ । उनके पास कोई भी ऐसे साधन नहीं है जिससे वो आगे बढ़ सके ।
हमारे शहर (बाराबंकी उ.प्र) से थोडा बाहर कि तरफ में एक परिवार ने सड़क के किनारे पर कुछ सुन्दर मूर्तियाँ लगानी शुरू किया । चूँकि मैं कला कि प्रशंशक हूँ तो मुझे ज्यों ही पाता चला , मैंने वह जा कर देखा कि 1 छोटी सी झोपडी (जो कि ख़ुद उनकी बनायीं हुई थी ) में वो मूर्ति कला का काम करते थे । एक भाई और एक बहन मिल कर . दो छोटे -छोटे बच्चे थे जो कि नंगे मिटटी में घूम रहे थे . पूछने पर पता चला कि वो बहन के बच्चे थे …पति ने शायद छोड़ दिया था ।दोनों भाई बहन मिल कर अपनी कला के ज़रिये अपनी जीविका चला रहे थे ।
मैंने तो अपने स्तर से जितना हो सका किया ..बस चाहती हूँ कि आप भी अपने लेवल से जो बन सकें ज़रूर करें । बहुत बहुत धन्यवाद ।
लेखिका
सपना जैन (Creative Designer)
DREAM CREATION
प्रस्तुतकर्ता
7 comments:
इसका उत्तरदायी कोई व्यक्ति विशेष नहीं है बल्कि हम ख़ुद है …
-बस यही पहचानना है...
जीवन में कला का अभाव हो तो व्यक्ति एक मशीन बन जाता है लेकिन कला के साथ अभाव भी जुड़ा रहता है।
आह्वान तो एक सही दिशा में है!
इसके जिम्मेवार भी हम ही है एक हद तक!
लेकिन हमारी नीति ही कुछ ऐसी हो गयी है के
"अपना जोगो जोग ना,बहार का जोगी सिद्ध" टाइप की!
अब चाइनीज माल को ही देख लो!कैसे पाँव पसारता जा रहा है!
क्यों? सस्ता है भाई!
घर की निर्मित चीज पर तो कर-वर लगा दो जी,बहार की चीज पर...
सब्सिडी दो उन्हें...जिस से उनका माल सस्ता बिके!
खाई मै थोडा ज्यादा भावुक हो चला था!
आपका एक और सही प्रयास!
जमे रहो,लगे रहो...
कुंवर जी,
जीवन में कला का अभाव हो तो व्यक्ति एक मशीन बन जाता है लेकिन कला के साथ अभाव भी जुड़ा रहता है।
ham shuruat to kar hi skte hai.
देश में मिट्टी गूंधने वाला कलाकार पेट की खातिर शहर में पाव रोटी गूंधने पर मजबूर है... सीमा पर पैर गँवाने वाला सिपाही गुमनाम रहता है और वज़ीरों को ईनाम मिलता है... करोड़ों में बिकने वाला क्रिकेटर भारत रत्न कहलाता है और गाँव का शिल्पकार कौड़ियों का मोह्ताज...
देवेश जी, मेरे सुझाव का पालन कर आपने जो सम्मान दिया उसका धन्यवाद करता हूँ...वे शब्द आपके ब्लॉग प्रोफाइल की तरह आपके जीवन से भी दूर हों ऐसा हमारा आशीर्वाद है...
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