March 19, 2010

अपने देश कि कला को बढ़ावा दें ......


मैं जिस बात का ज़िक्र आज कर रही हूँ वो न तो किसी विशेष personality से है और न ही किसी व्यक्ति विशेष से . बस एक ऐसा एहसास जो मुझे अक्सर होता है जब भी मैं किसी के अंदर कोई कला देखती हूँ और उसे अभावों कि ज़िन्दगी जीते हुए देखती हूँ .

मैं Sapna jain’, just on the way to establish myself as a reputated & well known designer. मैं अपने innovation, अपने creation को लोगों तक पहुँचाने कि कोशिश करती हु । कहीं कामयाब होती हूँ तो कही असफल भी । जब कामयाब होती हूँ तो संतुष्टि के साथ एक एहसास होता है कि “हाँ मैं कुछ हु ”. मेरे पास शिक्षा है , एक परिवार है , और मेरे घर वालों का साथ भी , लेकिन दुःख उन्हें देख कर ज़्यादा होता है जिन्हें ये सब नहीं मिला ….उनके पास है तो बस उनकी कला , वो भी बहुत सिमटा हुआ । उनके पास कोई भी ऐसे साधन नहीं है जिससे वो आगे बढ़ सके ।

हमारे शहर (बाराबंकी उ.प्र) से थोडा बाहर कि तरफ में एक परिवार ने सड़क के किनारे पर कुछ सुन्दर मूर्तियाँ लगानी शुरू किया । चूँकि मैं कला कि प्रशंशक हूँ तो मुझे ज्यों ही पाता चला , मैंने वह जा कर देखा कि 1 छोटी सी झोपडी (जो कि ख़ुद उनकी बनायीं हुई थी ) में वो मूर्ति कला का काम करते थे । एक भाई और एक बहन मिल कर . दो छोटे -छोटे बच्चे थे जो कि नंगे मिटटी में घूम रहे थे . पूछने पर पता चला कि वो बहन के बच्चे थे …पति ने शायद छोड़ दिया था ।दोनों भाई बहन मिल कर अपनी कला के ज़रिये अपनी जीविका चला रहे थे । देख कर एक तरफ बहुत ख़ुशी हुई कि ऐसी जिजीविषा होनी चाहिए …अपनी कला को प्रदर्शित करना चाहिए , चाहे वो किसी भी लेवल पे हो । दूसरी ही तरफ एक मायूसी हुई कि इतनी सुंदर कला लेकिन ऐसी अभावों वाली ज़िन्दगी । उसके पीछे एक मुख्य कारन था कि हम बाहरी चीज़ों को बहुत तरजीह देते है लेकिन अपने ही देश कि चीजों को नकार देते है । इसका उत्तरदायी कोई व्यक्ति विशेष नहीं है बल्कि हम ख़ुद है …हमारी सोच है । अगर हम अपने देश कि चीज़ों को बढ़ावा दे , उनकी कला को प्रोत्साहित करें …तो शायद हमारे कलाकार ऐसी अभावों वाली ज़िन्दगी न जियें ।

मैंने तो अपने स्तर से जितना हो सका किया ..बस चाहती हूँ कि आप भी अपने लेवल से जो बन सकें ज़रूर करें बहुत बहुत धन्यवाद

लेखिका

सपना जैन (Creative Designer)

DREAM CREATION

www.newdreamcreation.com


प्रस्तुतकर्ता

देवेश प्रताप



7 comments:

Udan Tashtari said...

इसका उत्तरदायी कोई व्यक्ति विशेष नहीं है बल्कि हम ख़ुद है …

-बस यही पहचानना है...

अजित गुप्ता का कोना said...

जीवन में कला का अभाव हो तो व्‍यक्ति एक मशीन बन जाता है लेकिन कला के साथ अभाव भी जुड़ा रहता है।

kunwarji's said...

आह्वान तो एक सही दिशा में है!

इसके जिम्मेवार भी हम ही है एक हद तक!

लेकिन हमारी नीति ही कुछ ऐसी हो गयी है के

"अपना जोगो जोग ना,बहार का जोगी सिद्ध" टाइप की!

अब चाइनीज माल को ही देख लो!कैसे पाँव पसारता जा रहा है!

क्यों? सस्ता है भाई!

घर की निर्मित चीज पर तो कर-वर लगा दो जी,बहार की चीज पर...

सब्सिडी दो उन्हें...जिस से उनका माल सस्ता बिके!

खाई मै थोडा ज्यादा भावुक हो चला था!

आपका एक और सही प्रयास!

जमे रहो,लगे रहो...

कुंवर जी,

संजय भास्‍कर said...

जीवन में कला का अभाव हो तो व्‍यक्ति एक मशीन बन जाता है लेकिन कला के साथ अभाव भी जुड़ा रहता है।

शोभना चौरे said...

ham shuruat to kar hi skte hai.

सम्वेदना के स्वर said...

देश में मिट्टी गूंधने वाला कलाकार पेट की खातिर शहर में पाव रोटी गूंधने पर मजबूर है... सीमा पर पैर गँवाने वाला सिपाही गुमनाम रहता है और वज़ीरों को ईनाम मिलता है... करोड़ों में बिकने वाला क्रिकेटर भारत रत्न कहलाता है और गाँव का शिल्पकार कौड़ियों का मोह्ताज...

सम्वेदना के स्वर said...

देवेश जी, मेरे सुझाव का पालन कर आपने जो सम्मान दिया उसका धन्यवाद करता हूँ...वे शब्द आपके ब्लॉग प्रोफाइल की तरह आपके जीवन से भी दूर हों ऐसा हमारा आशीर्वाद है...

एक नज़र इधर भी

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