देवेश प्रताप
आँखों में एक अहसास का जन्म होता है
पानी की बूंदों जैसा होता है,
छलक आती है ये बूंदे
जब मन रो पड़ता है,
निकल आती है बूंदे ये तब
जब खुशियों का मेला होता है ,
सारे दर्दों को समेट कर
एक बूंद बन जाती है ,
बिखर जाती है ये बूंदे
आँखों से विदा होकर ,
इन बूंदों में अजीब अदा होती है
पत्थरों को भी नरम कर देती है ,
ये आंसू ही है जो ,
इंसान होने का अहसास दिलाती है ॥
14 comments:
जब मन रो पड़ता है,
निकल आती है बूंदे ये तब
जब खुशियों का मेला होता है ,
सारे दर्दों को समेट कर
एक बूंद बन जाती है ,
बिखर जाती है ये बूंदे
....एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब..........
devesh ji aapki tareef ke liye mare pass shabad hi nahi hai......
आँखों में एक अहसास का जन्म होता पानी की बूंदों जैसा होता है,छलक आती है ये बूंदे
जब मन रो पड़ता है......
.... ये आंसू ही है जो ,इंसान होने का अहसास दिलाती है ॥
बहुत खूब देवेश भाई,
क्या खुबसूरत चित्रण किया है एहसासों का!
कुंवर जी,
आँसु को बहुत उम्दा तरीके से परिभाषित किया है।
पानी की बूँदों जैसे लम्हों को
जब समेटना मैंने,
तो एक जिन्दगी बन गई।
इन बूंदों में अजीब अदा होती है
पत्थरों को भी नरम कर देती है ,
ये आंसू ही है जो ,
इंसान होने का अहसास दिलाती है ॥
bahut sunder panktiyan.
ये आंसू ही है जो ,
इंसान होने का अहसास दिलाती है ॥
देवेश जी बिलकुल सही कहा आपने वर्ना जो इन्सानियत ही छोड चुके हों वो तो पत्थर समान होते हैं । दुख सुख सब एहसासों के साक्षी ये आँसू हैं शुभकामनायें
गहरी अभिव्यक्ति!!
बधाई..
मेरे गुरु गुलज़ार सा'ब की पंक्तियाँ याद करा दीं आप ने देवेश जी
मचल के जब भी आँखों से, छलक जाते हैं दो आंसू
सुना है आबशारों को बड़ी तकलीफ होती है.
कोमल भावनाओं की कोमल अभिव्यक्ति...
आंसू की सार्थकता को बताती सुन्दर रचना...
bahut hi lajabab post.
abhar
...सुन्दर रचना!!
सच में आँसू ही इन्सान होने का एहसास दिलाते हैं. सुन्दर रचना.
hey....its realy realy nice lines
hmmm interesting..
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