वो हर रोज एक जख्म दे जाते हैं
हम उन जख्मों के सहारे जिए जाते हैं ॥
मुझे कोरा कागज समझ कर
अपने दास्तानेब्याँ लिखते हैं ।
लिखते लिखते जब वो थक जाते हैं ।
कागज को टुकड़े टुकड़े कर के चले जाते हैं ॥
मुझे आइना समझ कर वो अपने
दुःख दर्द कहते है ,
आसुंओं कि बारिश को जब भी रोकने
कि कोशिश करता हूँ ।
जाने क्यूँ वो उस बारिश में
भीगना पसंद करते है॥
मैं साहिल कि तरह उनके आने का
इंतज़ार करता हूँ ,
वो लहर बन कर आते तो हैं ॥
पर चंद लम्हों में दूर
चले जाते हैं ॥
हम प्यार के मोती बटोरते रहे
वो उन मोतियों से खेलते रहे ॥
29 comments:
waah bahut khoob janaab..
देवेश जी आपको पहले भी पढ़ा है और आज की कविताओ मे आपके भावो को और भी ज्यादा करीब होकर जानने का मौका मिला, एक कविता एक रूप मे इसे मै बहुत अच्छा नही कहूँगा किन्तु भावोत्प्रस्तुति के रूप मे सार्थक कहूँगा।
हम प्यार के मोती बटोरते रहे
वो उन मोतियों से खेलते रहे ॥
.... बेहद संवेदनात्मक रचना,प्रसंशनीय !!!
गिले शिकवे कहने के लिये अच्छे भावों ाउर शब्दों का संयोजन अच्छा लगा शुभकामनायें
बहुत बढ़िया देवेश भाई , दिल से निकली भावनायें लगी ।
waah!
"हम प्यार के मोती बटोरते रहे वो उन मोतियों से खेलते रहे ॥"
bahut badhiya...
kunwar ji,
कविता के रूपमे अच्छे विचार संजोये है आपने!!!मेरी शुभकामनायें!!!
Yahi to daastan hai unki bewafi ki ... bahut hi samvednsheel rchna hai ...
काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर
फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
हम प्यार के मोती बटोरते रहे
वो उन मोतियों से खेलते रहे ॥
Devesh ji,
aapka bhav sansaar vrihad hai..jo is kavita mein nazar aa raha hai...man ki baat khoobsurati se aapne kah di hai..jo paathakon ke man tak utar gayi hai..
aap badhai ke paatr hain..
dhnywaad..
bahut sundar !
खूबसूरती से लिखे हैं जज़्बात....सुन्दर अभिव्यक्ति
हर बात दिल से निकली लगती है
very nice..
bahut khoob likha aapne..
सुन्दर लिखा, दिल के करीब ..मनभावन. ....
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'शब्द सृजन की ओर' पर आपका स्वागत है !!
बहुत बढ़िया लिखा आपने...सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई.
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'शब्द-शिखर' पर- ब्लागिंग का 'जलजला'..जरा सोचिये !!
दर्द के मारे रहेंगे दर्द के मारो के साथ ,
शमा रह नहीं सकती अंगारों के साथ ........
lajawab hai boss....
बहुत ही बढ़िया लगा! लाजवाब अभिव्यक्ति!
देवश भाई ..बहुत छोटे हो मुझसे इसलिए यह कहना उचित न होगा कि गहरी चोट खाए लगते हो.. शब्द शब्द गीला है... ज़रा धूल झाडने को हाथ लगाया मोनिटर को तो हाथ भीग गया...हौसला करो ..कह भी डालो!!
बहुत सुन्दर!! ई फोटोउवा कहाँ से निकाले हो जी !!!
bahut hi sundar rachna..
pata nahi kaise chhot gayi thi...
der se hi sahi lekin achhi rachna padhne ko mili.....
Wah! Is rachna ke samne,tippanee ke sab alfaaz,jo mere shabd kosh me hain, ghise,pite lag rahe hain..
Yaar Devesh,
Tum sahil banke intezaar karte ho aur hum saagar banke reh-reh kar bhigote hain!
Badhiya mere dost..... Bahut kuchh yaad aaya!
gajab likha hain ji.......kyon ki bht dilse likha hain aisa lgta hain....
AWESOME!
behad pasand aai aapki yah rachana.
sasu maa ki aswasthta ke karan allahabad jaana pad gaya tha. ab vah theek hain.
isiliye der se jawab dene ke liye chhama chahati hun.
poonam
devesh ji...sundar rachna!badhai!!
बेहतरीन कविता है भाई पर हो कहाँ इतने दिन से?/
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