May 12, 2010

क्या आज भी वो वैसा ही है ......

देवेश प्रताप

चाँद क्या तू मेरे महबूब का हाल बता देगा ।
अरसा
होगया उसके शहर में
मैंने कदम नहीं रखा ।

क्या वो वैसा ही है जैसे वर्षों पहले मैंने देखा था ।
या फिर इस नाटकीय दुनिया में ,
उसने
भी अपना रूप बदल लिया

ए चाँद तू उसकी अदाएं तो रोज देखता होगा

क्या
उसकी चंचलता आज भी वैसी है
जैसे पहले एक बच्चे की तरह
चंचल
मन से घुमा और रहा करती थी।
या फिर वक्त थपेडों ने उसके
जीने
का
सलीका बदल दिया ॥

क्या
आज भी वो सांझ को घर की

देहली
पर दिया जलाती है ।

या
फिर सांझ में दिया जलाने का
रिवाज मिटा दिया ॥

क्या
आज भी उसकी आँखों में

खुशियों
के मोती छलकते
है ।
या
फिर समय के चक्रव्यु ने

उन
मोतियों को गिरा दिया ॥



चाँद वो मिल जाये तो उससे कहना वो सख्स
जो वर्षों पहले तुम्हारी याद में रात भर
जागता था ,

आज
भी वो तुम्हारी तस्वीर को
आँखों में सजाकर रखा है
तुम्हारी याद में रोते रोते आँख से आंसू तो
सूख
गये
लेकिन सुर्ख आँखों से आज भी वो रोता है ॥

24 comments:

अनामिका 'अनु said...
This comment has been removed by the author.
श्यामल सुमन said...

क्या आज भी वो सांझ को घर की
देहली पर दिया जलाती है ।
या फिर सांझ में दिया जलाने का
रिवाज मिटा दिया ॥ ------- सुन्दर भाव देवेश जी। चाँद का सहारा लेकर आपने बहुत कुछ कह दिया।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

संजय भास्‍कर said...

अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.... बहुत सुंदर कविता....

संजय भास्‍कर said...

बेहद ही खुबसूरत और मनमोहक...

Udan Tashtari said...

वाह देवेश भाई...जबरदस्त!!




एक अपील:

विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

-समीर लाल ’समीर’

yuvatimes said...

शहर बोल दे यार। हम भी पता कर आते हैं?

kunwarji's said...

'जो होना चाहिए' पर 'जो हो रहा है' का डर!

वाह!

बहुत बढ़िया देवेश भाई....

कुंवर जी,

Anonymous said...

kya kehne..
bahut hi sundar rachna...
padhkar achha laga...
yun hi likhte rahein...
-----------------------------------
mere blog mein is baar...
जाने क्यूँ उदास है मन....
jaroora aayein
regards
http://i555.blogspot.com/

सम्वेदना के स्वर said...

बहुत ख़ूबसूरत यादों का सफर और चाँद से इल्तिजा...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

देवेश बाबू आप त चाँद को अपना हाल बता कर संतोस कर लिए...तनी सोचिए आपका महबूब का हाल कैसा होगा... अब त आप फिरी हो गए हैं, त जाकर मिल आइए... भगवान आपको आपका महबूब से मिला दे!!

अरुणेश मिश्र said...

अच्छा मानवीकरण ।

कडुवासच said...

...बेहतरीन!!!

Ra said...

सुन्दर अभिव्यक्ति .........अच्छी कविता ...पढ़कर अच्छा महसूस हुआ

http://athaah.blogspot.com/

Mohan S Rawat said...

maza aa gaya bhai

कडुवासच said...

...आपके सहपाठी विकास पाण्डेय जी को खोजते हुये यहां आ गया ....!!!!

ekal !!! ek awaaz said...

kya bat ahi ...... aap ne to jaan daldiye hai shabdo me aapne vicharo ke madhyam se

रश्मि प्रभा... said...

क्या उसकी चंचलता आज भी वैसी है
जैसे पहले एक बच्चे की तरह
चंचल मन से घुमा और रहा करती थी।
या फिर वक्त थपेडों ने उसके
जीने का सलीका बदल दिया ॥
......
log kahte hain ab kavi kahan , aadhunikta ke nashe se bahar aakar dekhen log kavi aaj bhi wahan pahunchta hai, jahan n pahunche ravi

Akanksha Yadav said...

खूबसूरत भावाभिव्यक्तियाँ....बधाई !!

shikha varshney said...

chaand ke bahane sabkuchh kah dia aapne...khubsurat kavita.

दीपक 'मशाल' said...

ऐसा भी होता है प्यार में मेरे दोस्त.. ऐसा भी होता है.....

Urmi said...

सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रूप से प्रस्तुत किया है! लाजवाब रचना!

kshama said...

Wah! Iske alawa aur kuchh kah nahi sakti!

Dev said...

आप सब का यह स्नेह .....हमें एक नयी ऊर्जा देता है ........बहुत बहुत शुक्रिया आप सभी का

mridula pradhan said...

bahot sunder.

एक नज़र इधर भी

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