May 11, 2010

खेल के बाद क्या होगा ??



देवेश प्रताप


भारत देश की राजधानी दिल्ली कामनवेल्थ खेल के लिए एक दुल्हन की तरह सजाई जा रही है . चारो तरफ जोरो शोरो से काम चल रहा है कही ट्रैफिक समस्या हल करने के लिए फ्लाई ओवर बन रहे है तो कही दिल्ली में आये लोंगो को कही आने जाने में परेशानी न हो इस के लिए मेट्रो रेल सेवा भी लगभग तैयार हो चुकी है . खेल के लिए स्टेडियम बन रहे तो खिलाडियों के रहने के लिए आशियाँ . इन सभी कार्यो को पूरा करने के लिए जो हाथ दिन रात काम कर रहे है । वो है दूसरे शहर से आये मजदूर जो अपनी रोजी –रोटी के लिए अपने गांव –शहर को छोड़ कर दिल्ली को सजाने में जुटे हुए है . अब सवाल ये उठता है कि , जब ये सारे कार्य खत्म हो जायेंगे और जब दिल्ली पूरी तरह से सज – सवंर के तैयार हो जायेगी . तब ये मजदूर कहाँ जाएंगे क्या वो अपने शहर –गाँव के लिए लौट जाएंगे या फिर इसी दिल्ली में कोई नयी रोजी रोटी तलाशंगे , लेकिन नयी रोजी रोटी के लिए अवसर कहा से मिलेंगे , तब शायद इतने निर्माण कार्य नहीं होगा । जब निर्माण कार्य नहीं होंगे तो ये मेहनत कि रोटी तोड़ने वाले कहाँ जायंगे । मौजूदा स्थिति में दिल्ली में लाखों के तादाद में अलग –अलग राज्य से मजदूर आकर अपनी जीविका चला रहे है । इस तैयारी के सबसे बड़े हिस्सेदार के लिए क्या सरकार ने कुछ सोचा है , या इनके लिए कोई नयी योजना बनी हो जिससे इनकी जीविका बरकरार रहे । यदि न सोचा हो तो सरकार को इनके भविष्य के बारें में ज़रूर सोचना चाहिए । ताकि ये मेहनत करने वाले हाथ कभी रोटी तोड़ने से खाली न जाये ।

10 comments:

कुमार राधारमण said...

संजीदा विषय। यह अच्छी मिसाल होगी अगर दिल्ली सरकार इस दिशा में कोई मानदंड कायम कर सके।

SANJEEV RANA said...

एक बार ये सब समाप्त होते ही सब कुछ चंगे हो जायेगा भाई
ये सब राजनीती की बातें हैं
देख लेना

kunwarji's said...

राणा जी आपने खूब कही!वैसे देवेश भाई ने ये बड़ा सही मुद्दा चुना लिखने के लिए!

कुंवर जी,

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अभी कहाँ फुर्सत है ये सोचने की....

बाद में कहा जायेगा कि दिल्ली में अन्य प्रान्तों से लोग आ कर भीड़ कर देते हैं जिससे दिल्लीवासियों को सुविधा नहीं मिलती...

संजय भास्‍कर said...

......संजीदा विषय।

संजय भास्‍कर said...

क्या कहा जाये...एक विचारणीय पोस्ट!

पूनम श्रीवास्तव said...

मौजूदा स्थिति में दिल्ली में लाखों के तादाद में अलग –अलग राज्य से मजदूर आकर अपनी जीविका चला रहे है । इस तैयारी के सबसे बड़े हिस्सेदार के लिए क्या सरकार ने कुछ सोचा है , या इनके लिए को नयी योजना बने हो जिससे इनकी जीविका बरकरार रहे है । यदि न सोचा हो तो सरकार को इनके भविष्य के बारें में ज़रूर सोचना चाहिए । ताकि ये मेहनत करने वाले हाथ कभी रोटी तोड़ने से खाली न जाये
bahut hiprabhav shali lekh.ise padhkar bhi shyad logo kiaankhe khul jaayen.
poonam

सम्वेदना के स्वर said...
This comment has been removed by the author.
सम्वेदना के स्वर said...

भाई राजेश रेड्डी की एक लाईन याद आती है… गो हाथ कट गये हैं, हुनर तो नहीं गये...ये मज़दूर मेहनतकश लोग हैं, कहीं तो आबोदाना ढूंढ लेंगे. लेकिन एक मीडिया रिपोर्ट बतती है कि जब 1982 में एशियाई खेल दिल्ली में हुए थे तो रातों रात एक ट्रेन में “लादकर” फुट्पाथ पर बसर करने वालों को कानपुर छोड़ दिया गया था... गाँव हो, शहर हो या फुट्पाथ, विस्थापन का दर्द बहुत सालता है...आपकी सोच को सलाम!!

कडुवासच said...

... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति!!!

एक नज़र इधर भी

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