देवेश प्रताप
तुम्हे देखा है कही इन वादियों के
बीच
फूलों के जैसे .......हंसी हैं , सुरीली हवा की जैसी
चंचलता ,
तुम वही हो जिसे मैंने सपनो में ढूंढा था
तुम इन फिज़ाओं में कहा चली जाती
हो ,
बैठ कर मै , तुम्हारा रस्ता संजोता हूँ
तुम्हरी झलक पाने के लिए आस्मां
ऊपर से निहारता है .......
तुम्हारे पायल की खनक
सुनकर दिल के तार
बजने लगते है ।
तुम्हारी मीठी सी आवाज़ जब कानो
में जाती है ,
इस जहां की हर आवाज़ फीकी लगने
लगती है ।
इतनी सरलता , इतनी सादगी , इतनी
सुन्दरता ......देख कर प्रकृति भी
खुशनुमा हो जाती है ।
मै तो कायल रहता हूँ तुम्हारी
इस अदायगी पर .....तुम्हे देख कर
मन्त्र मुग्ध हो जाता हूँ ।
ये रचना किसी के लिए समर्पित है ..............शब्द शायद कमजोर होंगे ......लेकिन भाव वही हैं ।
14 comments:
बहुत अच्छी प्रस्तुति .
खूबसूरती से सजाये हैं एहसास ..
जब भाव पबित्र होते हैं त सब्द बेमानी हो जाता है...भगवान करे, भावना खाली वेबस्पेस में न रहे,दिल से दिल तक पहुँचे!!
बहुत भावपूर्ण!
बीच बीच में ग़ायब हो जाते हैं आप और लौटते हैं तो ऐसी गहन अनुभूतियों के साथ... बहुत सुंदर!!
so beautiful!
अच्छी प्रस्तुति,
आप भी इस बहस का हिस्सा बनें और
कृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
अकेला या अकेली
आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना!
भाई मेरे,
शब्द भी ज़ोरदार हैं और भाव भी!!!
शुभकामनाएँ!
आशीष
--
अब मैं ट्विटर पे भी!
https://twitter.com/professorashish
इतनी सरलता , इतनी सादगी , इतनी
सुन्दरता ......देख कर प्रकृति भी
खुशनुमा हो जाती है ।
मै तो कायल रहता हूँ तुम्हारी
इस अदायगी पर .....तुम्हे देख कर
मन्त्र मुग्ध हो जाता हूँ ।
.....बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति
शुभकामनाएँ!
achhi aur bhavpoorn rachana.....
saadgee par saadgee se tahe dil se likhee rachana sarahniy hai........
shabdo me comment dena mushkil hai apke jazbaato k liye dev ji
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