देवेश प्रताप
आज साहिल उदास हैं
क्यूंकि लहर उससे मिलने नहीं आई,
लहर भी मजबूर हैं समंदर
के गिरफ्त में जो हैं,
साहिल तो बैठ कर लहर
के आने का इंतज़ार करता है,
और लहर भी हर पल समंदर
के गिरफ्त से निकल कर ,
बड़े चाहत के साथ साहिल
से मिलने आती है॥
और साहिल को पाकर उसके
आगोश में खो जाती है
इस बेइन्तेहा प्यार को देख कर ......
साहिल ने भी समंदर के बगल घर बना लिया
और लहर के एक मिलन के लिए
बैठ कर इंतज़ार करने लगा ,
लहर भी इस प्यार को पाने के लिए
अपने आपको हमेशा समंदर के गिरफ्त
से छुडा कर साहिल से मिलने चली आती है॥
वाह!!! क्या प्यार है .....लहर और साहिल का जवाब
नहीं इस प्यार का ..........
लेकिन आज लहर मिलने क्यूँ नहीं आई
“कही किसी इंसान ने समंदर को उसकी इज्ज़त की याद दिलाकर लहर को दफ़न तो नहीं करा दिया .......क्यूंकि इंसान से किसी का बेइंतहा प्यार देखा नहीं जाता”
11 comments:
बहुत बढिया कटाक्ष किए हैं आप समाज पर...
भाव अच्छे हैं... शब्द समायोजन में अभी भी सुधार की आवश्यकता है...हमारी शुभकामनाएँ!!
ji koshish karta hun ....ke aur behtar prastut kar sakun .....margdarshan ke liye bahut bahut shukriya .
Kalpnaaka dayra bahut khula hua hai..! Sundar rachna!
साहिल और किनारे की बात तो बहुत अच्छी लगी मगर ये दोनो समानान्तर रेखाओं की तरह हैं क्या कभी किनारे क्प लहरों से मिलते देखा है अगर मिलते हैं तो अपनी हदें तोड कर। बहुत भावमय कविता है। शुभकामनायें
उत्तम कविताएं और उत्तम विचार्…
बेहतरीन रचना .खूबसूरत !!
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'पाखी की दुनिया' में इस बार 'कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी' !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। एक कटाक्ष कहें या संवेदनहीन समाज पर एक सीधा प्रहार?????
bahut badhiya bhaav....
shubhkaamnaaye swikaar kare....
kunwar ji,
Achchhee rachna ke liye aapko
badhaaee aur shubh kamnaa.
ये प्रेम की आँख मिचोली है ... साहिल और लहर जुदा कब थे ...
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