August 9, 2011

'भ्रष्ट रहो वरिष्ठ रहो'

देवेश प्रताप



बहुत दिन हो गए ब्लॉग पर राजनीति , समाज पर कोई चर्चा नहीं हुई क्यूंकि समय नहीं मिला .....और जब समय मिला तो आलस्य से लैपटॉप के कीबोर्ड पर उंगलिया नाचने से मन कर दी खैर आज लिखने का मन किया तो सोचा कुछ लिख ही देता हूँ .......भ्रष्टाचार पिछले कुछ दिनों से सबसे ज्वलनशील मुद्दा बना है ......कोई अनसन कर रहा है तो कोई रैली .....इस बार आम जनता भी किनारे -किनारे से वरोध कर रही है लेकिन मेरे समझ में ये नहीं आया की आखिर भ्रष्ट कौन है .....सरकार भ्रष्ट हो नहीं सकती .....सरकारी अफसर तो बेचारे पूरे दूध की तरह साफ़ है .......आम जनता भ्रष्ट होकर भी क्या करलेगी .....तो भ्रष्टाचार फैला कहाँ से ?......आप स्वयं ध्यान दीजिए ....अभी तक जितने भ्रष्टाचार के मामले उभरे हैं .........और उस मामले की जितने भी आरोपी है .......वो बेचारे कहा भ्रष्ट है .....वो तो सरकार से दुहाई लगा रहे ......की ''मैंने किया क्या है ....बस देश के पैसे को अपना समझ कर बैंको में इकठ्ठा कर लिया .....अब इसमें मेरी क्या गलती '' ............बिलकुल सही कहना है इनका ......बेवजह बेचारों को जेल भेज दिया है ......हलाकि जेल एकदम पांचसितारा होटल की तरह तो तकलीफ कोई बात नहीं है ..........अब आपने २०० -३०० रु की चोरी थोड़ी न की है की पाँव में बेड़ियाँ जड़ी हो ....... common wealth खेल की CAG रिपोर्ट आई तो विपछ के नेता तो पीछे ही पड़ गए ....शीला दीक्षित जी को कुर्सी से उतारने के लिए ......अरे भाई इतनी उम्र होगयी है कुछ अपने भविष्य का भी ख्याल रखेंगी की नहीं ....या सिर्फ देश के बारे में सोचती रहेंगी ..........अब रख लिए होंगे कुछ पैसे जमा करके ......अब विपछ से ही पूछिए के उनको अगर मौका मिला होता तो क्या वो .....दो -चार इधर -उधर न किए होते .........हम तो कहते है जाने दीजिए क्यों बुढ़ापे में लोग उन्हें परेशान कर रहें हैं ........... भ्रस्टाचार करने वालों को 'भ्रष्ट रहो वरिष्ठ रहो '' का नारा लगाना चाहिए हमें तो लगता ....अब बड़े बड़े दिगज्जों के बीच ये होड़ लगी होगी किसने कितना बड़ा घोटाला किया .....किसने कितने पैसों को गबन किया ??
हद हो गई बेशर्मी की .........आरोप लगता है तो कहेते है कि ''इस आरोप को पूरी तरह साबित करो ........की हम भ्रष्ट है'' अरे देश को लूटने वालों .......एक बार ज़रा इस देश के बारें में भी सोचा करो ..........जब तुम आपनी तिजोरियां भरते हो ......तब इसी देश के मध्यमवर्गीय परिवार का एक सदस्य ......ये सोचता है की बच्चे की फीस कैसे जमा होगी .......घर का खर्च कैसे चलेगा ........ये तो छोडो ज़रा उनके बारे में सोचो ...जिनका पूरा दिन एक वक्त की रोटी के इन्तजाम में बीत जाता है अगर इस बारे में ज़रा से भी सोच लो तो शायद तुम्हारी आत्मा तुम्हे भ्रष्ट होने से पहले तुम्हे रोक दे

4 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

Sahmat Hun.... Sthiti bahut vikat hai....

Urmi said...

सही मुद्दे को लेकर आपने बड़े ही सुन्दरता से लिखा है! मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ! बेहतरीन प्रस्तुती!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

प्रिय बंधुवर देवेश जी सस्नेहाभिवादन !

इन भ्रष्टाचारियों को शर्म लाज कहां है ?

ये इंडिया है … जहां चपरासी से ले'कर प्रधानमंत्री तक भ्रष्ट पाए जाते रहे हैं … जनता सोती रहेगी तब तक ये सांप सीने पर तांडव करते रहेंगे …

मेरी एक रचना की कुछ पंक्तियां आपके लिए प्रस्तुत हैं -
मौज मनाए भ्रष्टाचारी !
न्याय व्यवस्था है गांधारी !
लोकतंत्र के नाम पॅ
तानाशाही सहने की लाचारी !

हत्यारे नेता बन बैठे !
नाकारे नेता बन बैठे !
मुफ़्त का खाने की आदत थी
वे सारे नेता बन बैठे !


वंदे मातरम् !


मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ

-राजेन्द्र स्वर्णकार

Asha Lata Saxena said...

अच्छा लेख बहुत ज्वलंत मुद्दे |बधाई
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार |
आशा

एक नज़र इधर भी

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