June 3, 2012

क्या लिखूं .....

देवेश  प्रताप

बहुत दिनों बाद लिख रहा हूँ ...लेकिन एक बात तो सत्य है ....कि  इस ब्लॉग को बहुत मिस करता हूँ .....आज  ब्लॉग खोल कर जब लिखने बैठा तो सोचा क्या लिखूं कहाँ  से शुरू करूँ क्या शुरू करूँ .......तो ख्याल आया यदि आधुनिकता की ये दुनिया ना होती तो ये ब्लॉग ना होता यदि ब्लॉग ना होता तो ...इतनी सुंदर रचनाएँ , अनेको विचार और भावनाओं की नदियाँ कहाँ बहती.....शायद खुद की डायरी में या फ़िर बिखरे पन्नों में |  मुझे याद है, इलाहबाद में मेरे रूम पार्टनर अक्सर आपनी बातों को चंद  पन्नों पर संजो देते थे | एक दिन कोई किताब ढूंढते हुए मैं उनकी अलमारी तक पहुँचा चार पांच पन्ने मेरे हाथ लगे जिसे मैं अलगकर किताब ढूँढने में लग गया ...हालाँकि किताब नहीं मिली ...अंततः ..उन पन्नों को उठा कर आलमारी पर रखते वक्त मेरी निगाह कुछ शब्दों पर रुक गई ...ना चाहते हुए भी उन पन्नों पर निगाह दौड़ने लगी  .......हालाँकि कुछ भी पर्सनल जैसा नहीं था .......लेकिन जो भी लिखा था वो एक दर्द ,असमंजस  और तमाम उन बातों का जखीरा, जो शायद किसी से बयाँ नहीं किया जा सकता ......शाम को मैंने उनसे पूछा कि "आप इन सब बातों को लिखते क्यों हैं...इससे क्या फायदा" ......उन्होंने कहा "सुकून के लिए" ये बात मेरे बहुत दिनों तक समझ में न आई .... .....लेकिन जब से मैंने ब्लॉग की  दुनिया में कदम रखा और शब्दों को संजोना शुरू किया ......तब समझ आया कि अपनी बातों को लिख कर व्यक्त करने में कितना सुकून मिलता है | .....ओह ये लिखते-लिखते क्या उलूल-जुलूल लिख डाला ...खैर कोशिश रहेगी कि निरन्तर कुछ ना कुछ इस ब्लॉग पर परोसता रहूँ ...........

5 comments:

संजय भास्‍कर said...

बहुत बार ऐसा ही होता है ..बड़ी कशमकश चलती रहती हैं
बहुत बढ़िया मनोभाव ...!!

ZEAL said...

तब समझ आया कि आपनी बातों को लिख कर व्यक्त करने में कितना सुकून मिलता है | .... It's true !!

Sapna Jain said...

bahut khoobsurat

kshama said...

Sach! Kayi baar ham likh nahee pate aur likhne baithte hain to samajh me nahee aata kahanse shuru karen.....aapka phir ek baar swagat hai!

दिगम्बर नासवा said...

इस कशमकश कों शब्दों में उतार के जल्दी ही ले आइये ब्लॉगजगत में ...

एक नज़र इधर भी

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