March 14, 2012

ख्वाहिशों में जगे सपने ....

देवेश प्रताप

घोंसलों से निहारती आँखों में आस्मां से
लिपट जाने का सपना है ,

गुलाब की कलियों को खिल कर
मुस्कुराने का सपना है,

बादलों में लिपटी पानी की बूंदों को
ज़मीं को छू लेने का सपना है ,

कौन जाने इन सपनो को कब मंजिल
मिलेगी फिर भी

ख्वाहिशों में जगे हर सपने को पूरा
कर लेने का सपना है |

3 comments:

Mohan S Rawat said...

bahut khoob, aise hi hausalaan banaye rakhein

Sapna Jain said...

bahut achi lines hai...keep it up

kulwant happy said...

nice....

एक नज़र इधर भी

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