December 31, 2012

कुंठित मानसिकता ...

2012 विदा होते हुए अपनी कई सुख और दुःख भारी यादें दे गया | इन यादों में सबसे दर्दनाक यादें हैं "भारत की बहादुर बेटी की विदाई" इस बेटी के जाने के सदमें में पूरा देश डूबा है तथा अपराधियों के खिलाफ उबरा जनसैलाब भी वाजिब है | अब सवाल ये उठता हैं कि ऐसी घिनौनी हरकत करने वाले होते कौन हैं , लगतार सामूहिक बलात्कार अथवा बलात्कार के बाद हत्या करने वाले दरिंदे किस समाज से ताल्लुकात रखते हैं ? ऐसी कुंठित मानसिकता के शिकार लोग बहुत ही नीचे तबके के होते होंगे लेकिन ये भी गंवारा नहीं कि ऐसी मानसिकता के लोग सिर्फ नीचे तबके के हों | यदि ऐसा होता तो बुद्धजीवियों के दफ्तर में महिलाओं के साथ छेड़छाड़ के किस्से न्यूज़ पेपरों में ना छपते होते| मेरा ये मानना है ऐसी हरकत करने वाले लोग उस मानसिकता से हैं जिन्हें महिलाओं को अपने बराबर खड़ा होते देख सहन नहीं होता , महिलाओं की आज़ादी देख अपने आप में कुंठित हो जाते हैं | अफ़सोस इस बात का है ऐसी सोच का बीज हमारे देश में शुरू से बोया गया था | पुरुष और महिलाओं बराबरी का दर्ज़ा ना देकर | अगर ऐसी ही कुंठित मानसिकता रही तो हमारे देश में ऐसे हादसे कभी नहीं रुक पायेंगे | जरूरत है सोच को बदलने की |

December 18, 2012

बड़े दुःख की बात...

भारत की राजधानी दिल्ली, जिसकी महिला मुख्यमंत्री ...उसी राज्य में ..आये दिन महिलाओं के साथ बलात्कार छेड़छाड़ के मामले सबसे ज़्यादा हैं | बड़े दुःख की बात है ...अपराधी कहीं ना कहीं इतने बेकौफ हैं कि कानून और सरकार को अपनी चुटकी में लेकर अपराध को अंजाम देते हैं...| चलती बस में रेप की खबर न्यूज़ पेपर से लाकर न्यूज़ चैनल तक .....ब्लॉग से लेकर फ.बी के हर पेज़ तक इसकी चर्चा रही ....लेकिन सवाल सिर्फ चिल्लान
े तक नहीं ....सवाल ये है ,ये हादसे कब तक राजधानी को शर्मसार करते रहेंगे ? आज हंगामा कल फ़िर सब शांत होंगे .....अगर इस हंगामे का कोई अंजाम होता तो इस राजधानी में 2012 oct. तक रेप के 580(नेशनल दुनिया न्यूज़ पेपर के अनुसार ) मामले ना होते | ऐसे हादसे जब होते हैं तब मुख्यमंत्री के दफ्तर से लेकर संसद तक शोर होता हैं ....और फ़िर जैसे जैसे वक्त गुजरता है ....शोर की गूंज धीमी हो जाती हैं |
क्या बीत रही होगी उस पीड़ित बेटी के माँ - बाप पर जो जिंदगी से लड़ रही है ....क्या बीत रही होगी उस लड़की के दोस्त पर जो अपनी पूरी ताकत लगाकर चलती बस में ...उन दरिंदों से बचा नहीं पाया | ये सोचने के बाद दिमाग में यही आता है ऐसे अपराध को अंजाम देने वालों को सरे - आम फांसी दे देनी चाहिए | जिससे फ़िर कभी कोई अपराधी ऐसा अपराध करने से पहले अपने मौत को निश्चित कर लें |

December 17, 2012

कितने लाइक आते हैं

हीरो - हिरोइन पे बहुत लाइक आते हैं ...आज देखते हैं इस शहीद जवान पर कितने लाइक आते हैं" ऐसे कमेन्ट अक्सर फेसबुक पर देखने को मिल जाता है ... मै ऐसे कमेन्ट करने वाले से ये कहना चाहता हूँ ....रील लाइफ के हीरो-हिरोइन से उनकी कोई तुलना नहीं ....उनकी कीमत तो वो भी समझतें और लाइक करतें हैं जो फेसबुक से भी अनजान हैं ....हमारे देश के जवान की कीमत खेत में हल चला रहा किसान और ऑफिस में बैठा एक ऑफिसर भी समझता और "लाइक" करता है ....उनकी कुर्बानी चंद "लाइक" की मोहताज नहीं |

December 16, 2012

भगवान से डर...

अक्सर ऐसे फारवर्डड मैसेज आते है कि "इस मैसेज को दस लोगों को फारवर्डड करके देखिए आपके जीवन में तुरन्त खुशियाँ आएगी .....यदि इसे डिलीट किया तो आपके साथ अनहोनी हो जायेगी" मै समझ नहीं पाता ऐसे मैसेज निर्मित कौन करता है ..वो भी भगवान के नाम पर ...ऐसा कौन इंसान होगा जो अपनी ज़िंदगी में खुशियों के बजाय दुःख झेलना चाहेगा ....ऐसा मैसेज आने के बाद ऐसा प्रतीत होता है ...सर पे किसी ने आस्था के नाम कि बन्दूक लग
ा दी हो और बोल रहा हो ऐसा कर नहीं तो मर ....मरता क्या ना करता ...जीवन किसे नहीं प्यारा ....दस लोगों को मैसेज फारवर्डड कर दिया अब उसके सर से बोझ हटा अब अगला झेले ...लेकिन ये सब आस्था के नाम पे क्यूँ ...क्या भगवान भी डरा डरा के अपने समर्थक बढ़ाते हैं | हाल ही में आयी एक हिंदी फिल्म "oh my god" आस्था के नाम पर मची लूट खसोट का जबर्दस्त विवरण है ....इस फिल्म में ये साफ़ दर्शाया गया है भगवान को लोग प्रेम से नहीं डर से मानते हैं | हालाँकि फिल्म अपने उद्देश्य में खरी उतरी कि भगवान को डर से नहीं प्रेम से मानो....ये तो फिल्म कि बात रही | लेकिन असल ज़िंदगी में भी ये बात खरी उतरती है | हमें भगवान से डर है प्रेम नहीं ||

एक नज़र इधर भी

Related Posts with Thumbnails