April 3, 2010

तेरे शहर में .....

देवेश प्रताप


आज नजाने क्यूँ तेरा शहर
बेगाना लग रहा है ,
तेरे शहर के लोग तो पुराने है
मै ही इस शहर में नया लग रहा हूँ

आज बहारों ने मेरा स्वागत नहीं किया
फिजायें तो वही है , जो मेरे आने कि ख़बर
तुझ तक पंहुचा देती थी , जाने क्यूँ आज मै
उनके लिए पराया लग रहा हूँ

तेरे घर कि खिड़की तो खुली है ,
पर उस खिड़की पर इंतज़ार करता
कोई चेहरा नज़र नहीं रहा है

मैं बेचैन हूँ आज तेरी आहट ने
मुझ तक दस्तक दी ,
तेरी इस रुसवाई से बिखरता जा रहा हूँ
यादों के इस शहर में खो ता जा रहा हूँ

10 comments:

संजय भास्‍कर said...

मैं बेचैन हूँ आज तेरी आहट ने
मुझ तक दस्तक न दी ,
तेरी इस रुसवाई से बिखरता जा रहा हूँ ।
यादों के इस शहर में खो ता जा रहा हूँ ॥


इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

संजय भास्‍कर said...

ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .

Shekhar Kumawat said...

तेरी इस रुसवाई से बिखरता जा रहा हूँ ।
यादों के इस शहर में खो ता जा रहा हूँ ॥

wow !!!!!!!!!


shekhar kumawat

http://kavyawani.blogspot.com/

कडुवासच said...

मैं बेचैन हूँ आज तेरी आहट ने
मुझ तक दस्तक न दी ,
...बहुत खूब ... जबरदस्त भाव!!!!

Kulwant Happy said...

बहुत बढ़िया

Sadhana Vaid said...

सुन्दर भावों से सुसज्जित एक ख़ूबसूरत रचना ! दिल को छू गयी ! बधाई !

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है जो काबिले तारीफ़ है! दिल को छू गयी आपकी ये लाजवाब रचना! बधाई!

aradhana chaturvedi "mukti" said...

भावपूर्ण रचना है. अन्तिम पंक्तियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.

प्रज्ञा पाण्डेय said...

वाह ,बहुत खूब .......
भावपूर्ण रचना है ..

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज के समय में अक्सर ऐसी बेचैनी मन में द्वन्द पैदा कर देती है....सटीक रचना..

एक नज़र इधर भी

Related Posts with Thumbnails