देवेश प्रताप
आज नजाने क्यूँ तेरा शहर
बेगाना लग रहा है ,
तेरे शहर के लोग तो पुराने है
मै ही इस शहर में नया लग रहा हूँ ॥
आज बहारों ने मेरा स्वागत नहीं किया
फिजायें तो वही है , जो मेरे आने कि ख़बर
तुझ तक पंहुचा देती थी , जाने क्यूँ आज मै
उनके लिए पराया लग रहा हूँ ॥
तेरे घर कि खिड़की तो खुली है ,
पर उस खिड़की पर इंतज़ार करता
कोई चेहरा नज़र नहीं आ रहा है ॥
मैं बेचैन हूँ आज तेरी आहट ने
मुझ तक दस्तक न दी ,
तेरी इस रुसवाई से बिखरता जा रहा हूँ ।
यादों के इस शहर में खो ता जा रहा हूँ ॥
10 comments:
मैं बेचैन हूँ आज तेरी आहट ने
मुझ तक दस्तक न दी ,
तेरी इस रुसवाई से बिखरता जा रहा हूँ ।
यादों के इस शहर में खो ता जा रहा हूँ ॥
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .
तेरी इस रुसवाई से बिखरता जा रहा हूँ ।
यादों के इस शहर में खो ता जा रहा हूँ ॥
wow !!!!!!!!!
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
मैं बेचैन हूँ आज तेरी आहट ने
मुझ तक दस्तक न दी ,
...बहुत खूब ... जबरदस्त भाव!!!!
बहुत बढ़िया
सुन्दर भावों से सुसज्जित एक ख़ूबसूरत रचना ! दिल को छू गयी ! बधाई !
बहुत ख़ूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है जो काबिले तारीफ़ है! दिल को छू गयी आपकी ये लाजवाब रचना! बधाई!
भावपूर्ण रचना है. अन्तिम पंक्तियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.
वाह ,बहुत खूब .......
भावपूर्ण रचना है ..
आज के समय में अक्सर ऐसी बेचैनी मन में द्वन्द पैदा कर देती है....सटीक रचना..
Post a Comment