December 28, 2009

दलित.........

देवेश प्रताप
आज भारत सबसे ज़यादा जातिवाद से पस्त है । ये एक ऐसा कीड़ा जो इंसान के दिमाग से निकलने का नाम ही नहीं लेता । और जातिवाद का सबसे ज़यादा फायदा राजनीति को होता है क्यूंकि यही एक मुददा है जिसके जरिये वोट बैंक बढया जा सकता है । अल्प संख्यक , पिछड़ी जाती , दलित ये कुछ ऐसे शब्द है जो वोट बनाते है । आज कल तो दलित शब्द खूब चर्चित हो रहा हैहो भी क्यों न आज उत्तर प्रदेश की सरकार दलित शब्द के प्रयोग का ही फल है के अच्छे से राज कर रही है । अब धीरे धीर और भी नेताओ को समझ आने लगा है की यदि उत्तर प्रदेश पर राज करना है तो सबसे पहले दलित को अपनाओ । ''दलित'' का किरदार तास के पत्ते की तरह हो गया है । आज राष्ट्र नेता राहुल गाँधी जी भी दलित शब्द को समझने लगे है । इसलिए दलितों के घर रात बिताते है और खाना भी खाते है । ये सब करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से ये जरूर अहसास दिलाते है की ''तू दलित है जिसका छुआ लोग पानी नहीं पीते है लकिन देख मैंने तेरे घर रात गुजारी और तेरे हाथ का बना खाना भी खाया '' । यदि आप जिस गाव में जाकर ये ढकोसला करते है । यदि उस गाँव की बिजली ,पानी और बेरोजागारो क लिए कोई रोजगार क समाधान निकाले तो उस गाँव में निवास कर रहे सामान्य से लाकर दलित तबके तक का भला होगा । लेकिन राहुल जी कभी आपने सोचा की आपके लौट आने के बाद भी वो वही दलित ही रहेते है जो पहले थे सिर्फ फर्क इतना हो जाता है उन्हें गुमान हो जाता होगा उनकी अपनी बिरादरी में के मेरे यहाँ राहुल गाँधी आये थे । इससे जायदा कोई फर्क नहीं होता होगा । लकिन उस दिन मीडिया को एक खबर मिलजाती है आपका नाम दलित शब्द के साथ जोड़ना का । ज़रा कभी सोचियेगा की जिस घर आप रुकते है खाना खाते है । उस घर में एक वक़्त की रोटी आती कहा से है । और ये सवाल सिर्फ एक दलित के लिए ही नहीं बल्कि उन भारत वासियों की लिए है । जिनको आज भी सिर्फ एक वक़्त का रोटी नसीब होती है । बेहतर हो की किसी जाती , धर्म या क्षेत्रवाद से बचकर एक उत्तम भारत की कल्पना के लिए राजनीत करें तो शायद इस पिर्थ्वी का सबसे अनोखा देश होगा हमारा भारत ।

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