देवेश प्रताप
घोंसलों से निहारती आँखों में आस्मां से
लिपट जाने का सपना है ,
गुलाब की कलियों को खिल कर
मुस्कुराने का सपना है,
बादलों में लिपटी पानी की बूंदों को
ज़मीं को छू लेने का सपना है ,
कौन जाने इन सपनो को कब मंजिल
मिलेगी फिर भी
ख्वाहिशों में जगे हर सपने को पूरा
कर लेने का सपना है |