August 26, 2010

इस रचना में तुम हो ......

देवेश प्रताप

तुम्हे देखा है कही इन वादियों के
बीच
फूलों के जैसे .......हंसी हैं , सुरीली हवा की जैसी
चंचलता ,
तुम वही हो जिसे मैंने सपनो में ढूंढा था

तुम इन फिज़ाओं में कहा चली जाती
हो ,
बैठ कर मै , तुम्हारा रस्ता संजोता हूँ
तुम्हरी झलक पाने के लिए आस्मां
ऊपर से निहारता है .......

तुम्हारे पायल की खनक
सुनकर दिल के तार
बजने लगते है ।
तुम्हारी मीठी सी आवाज़ जब कानो
में जाती है ,
इस जहां की हर आवाज़ फीकी लगने
लगती है ।

इतनी सरलता , इतनी सादगी , इतनी
सुन्दरता ......देख कर प्रकृति भी
खुशनुमा हो जाती है ।
मै तो कायल रहता हूँ तुम्हारी
इस अदायगी पर .....तुम्हे देख कर
मन्त्र मुग्ध हो जाता हूँ ।

ये रचना किसी के लिए समर्पित है ..............शब्द शायद कमजोर होंगे ......लेकिन भाव वही हैं ।

August 15, 2010

जय हिंद , जय भारत

आप सबसे क्षमा चाहता हूँ .......ब्लॉग पर नियमित रूप से समय नहीं दे पा रहे है । कुछ व्यस्तता के कारण वश यहाँ पर आना नहीं हो पा रहा है ।

स्वतंत्रता दिवस ६४ वें वर्षगाँठ को मना रहे है । ये दिन हम सभी भारत वासियों के लिए बहुत ही महतवपूर्ण दिन होता है । आप सब को स्वतंत्रता दिवस कि ढेर सारी शुभकामनाएं.... इस अवसर पर एक छोटी सी रचना .......


रहे ख्याल इतना हे ! देशवासिओं
हम आज़ाद भारत में अपनी साँस
ले रहे है ।

जिसने लगा दी अपनी जिंदगी
इस आज़ादी के लिए
उनके इस कुर्बानी को
यूँ न जाया करो ,
उनके इस बलिदान का
कुछ तो ख्याल करो ।

भ्रस्टाचारी , घूस खोरी ,
मार काट न करो ।
भारत कि गरिमा को
यूँ ही न तार -तार करो ।

खून पसीने का बीज जो
मिटटी में उगा रहा है ,
उसकी मेहनत का
कुछ तो कद्र करो

क्षेत्रवाद , जातीवाद ,भाषावाद
का नशा न करो ,
देश कि अखंडता
को यूँ न खंडित करो ।

रहे ख्याल इतना हे ! देशवासियों


जय हिंद , जय भारत ।



August 4, 2010

पतंग...........

देवेश प्रताप

एक धागे में बंधी
मै तो उड़ चली थी,

स्वछन्द आस्मां
में
मै लेहरा रही थी,

आस्मां भी बाहें
फैलाये मेरा इंतज़ार
कर रहा था

मै भी झूम झूम कर
आगे बढ़ रही थी
मन
में एक विश्वास
था , एक डोर के
सहारे अम्बर
को छू लेने का
जज्बा था

लेकिन ये क्या , किस से देखा
नहीं गया , यूँ मेरा
गगन में लहराना ,
मेरी
तम्मनाओ के पंख
किसने एक पल में
काट
दिए ,

क्यूँ काट दिया मेरी उस विश्वास
कि डोर को जिसके सहारे
मै आस्मां को
छूना चाहती थी ,

मेरी डोर को काटने वाले
को सुकून मिल गया होगा ,
मुझे आस्मां में भटकते हुए
और ज़मीं पर गिरते हुए
देख कर

August 2, 2010

ये भी दिल्ली का एक हिस्सा है ????

देवेश प्रताप

दिल्ली में दो दिन से मौसम मेहरबान है .......बारिश भी झमाझम हो रही है मौसम का आनंद दिल्ली वासी ले रहे हैं लेकिन कॉमन वेल्थ खेल के तैयारी वाले शायद थोडा सी निराशा हो रही हो क्यूंकि दिन रात चल रहे काम में बांधापड़ रही है फिर भी कार्य प्रगति पर है। हम चाहते भी है की खेल के पहले दिल्ली दुल्हन की तरह सज के तैयार हो जाये लेकिन इस सजवाट में क्या केवल वही तक ध्यान दिया जा रहा है जहां तक खेल का सम्बन्ध है कल शाम में दिल्ली के खानपुर एरिया में एक काम से जाना हुआ है जैसे ही हम रोड से थोडा अन्दर की तरफ बढे ....तो विश्वास ही नहीं हुआ की ये भी दिल्ली का हिस्सा है जगह -जगह पानी भरा था और पानी इस तरह भरा था जो निकलने का कही से रास्ता नज़र नहीं रहा था खैर हम अपना काम निपटा कर वह से निकलने ही वाले थे की बारिश मेहरबान होगयी हम भी रुक गए , कि बारिश थोड़ी धीमी हो जाये या रुक जाये तब निकले कुछ ही देर बाद बारिश धीमी हो गयी ....मै और मेरे मित्र आपस में बात करने लगे ''की इतनी बारिश में निकलते है ...नहीं तो तेज हो गयी तो भीग ही जायेंगे '' बगल में एक खड़े व्यक्ति ने कहा ...''हां निकल जाईये वरना यहाँ इनता पानी भर जायेगा की रास्ता नज़र नहीं आएगा '' ये सुनकर थोडा अजीब लगा जैसे ही आगे बढ़ा की बारिश तेज हो गयी और फिर हम लोग बाइक किनारे लगा कर खड़े हो गए ......देखते ही देखते रास्ता कब पानी की आगोश में खो गया पाता ही नहीं चला यह हाल देख कर ये लगा की इसकी फ़िक्र सरकार क्यूँ करे क्यूंकि इस रास्ते कभी कोई मिनिस्टर गुजरेगा कोई सेलेब्रिटी .....तो ऐसे जगह सरकार फ़ालतू में क्यूँ पैसा खर्च करे वहाँ से तो केवल आम आदमी गुजरेगा और आम आदमी को लिए किसी भी व्यस्था की ज़रुरत नहीं होती

August 1, 2010

ये दोस्ती .....


देवेश प्रताप

सारे रिश्ते ऊपर से बन कर आते है ,दोस्ती एक ऐसा खूबसूरत रिश्ता जिसे हम ख़ुद बनाते है । आज firendship day है । यूँ तो किसी भी रिश्तों का अहसास दिलाने के लिए किसी विशेष दिन की आवश्यकता नहीं होती । वैसे जिस रिश्ते में स्वार्थ नहीं उससे ज्यादा खूबसूरत रिश्ता कोई नहीं हो सकता । और यही होता है सच्ची दोस्ती में जो सिर्फ दोस्ती को निभाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है । कभी कभी ऐसा भी होता है जब कोई ये सवाल करता है की सबसे अच्छा दोस्त कौन है और शर्त ये की कोई एक ही होना चाहिए , ये बड़ा ही जटिल सवाल होता है । इतनी बड़ी दुनिया में कोई एक ही सबसे अच्छा और करीबी दोस्त कैसे हो सकता है । दोस्त की लिस्ट में कई ऐसे दोस्त होते है जो सबसे ज़्यादा करीब होते है । दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता जिसमें किसी भी शर्त की जगह नहीं होती , पूर्ण रूप से स्वतंत्र होती है । जहाँ भी ये शब्द आता है वहां किसी भी प्रकार की बांधा नहीं रह जाती है , सिर्फ सवतंत्रता रह जाती है । आज के मायने में दोस्ती करना तो आसान होगया है ठीक उसी तरह ....रेत पर 'दोस्त' शब्द लिखना , लेकिन उसे निभाना ' पानी पर दोस्त लिखना ' जैसे होता है । ज़िन्दगी के सफ़र में बहुत से दोस्त बनते है और साथ भी छूटते हैं , ये मिलना और विछ्ड़ना यही तो ज़िन्दगी की नियति है । इस दिन के लिए आप सब को हमारे तरफ से ढेर सारी बंधाई ।

एक नज़र इधर भी

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