July 31, 2010

जाने क्यूँ इतना याद आते हो .....

देवेश प्रताप


बिन बरसात के आज भी तुम
बरस
जाते हो
जाने क्यूँ इतना याद आते हो

सावन
के झूलों की तरह ,
आज भी मन को झुला जाते हो
जाने क्यूँ इतना याद आते हो

तुम
यूँ चले तो गए मेरी दुनिया से दूर
इन
आँखों से दूर कैसे जाओगे
आज
भी इन नैनों में आंसू बन
कर
छलक जाते हो ,
जाने
क्यूँ इतना याद आते हो

वादों
की लकीरों को तुम पार
कर के चले गए ,
मन की लकीरों को कैसे
पार
कर पाओगे
दिल
की गली से यूँ ही
गुजर
जाते हो
जाने
क्यूँ इतना याद आते हो

July 30, 2010

ये साहब कब आयेंगे समय पर .........

देवेश प्रताप

सरकारी दफ्तर में किसी भी काम को लेट लतीफ़ करने का एक चलन बनगया है । आप कितनी भी जल्दी में हो कितनी भी परेशानी में हो इस बात को सरकारी कर्मचारी नहीं समझेंगे कुछ अपवाद को छोड़ क । अभी २ दिन पहले कि बात है । मेरे एक मित्र को फिल्म शूटिंग कि लिए नॉएडा में अनुमति चाहिए थी । इस काम के लिए हम लोग सिटी magistrate के पास गए । वहाँ पर मौजूद एक मुन्सी ने कहा ''आप प्रार्थना पत्र छोड़ जाइये हम इसे आगे बढ़ा देंगे लेकिन समय लगेगा '' मेरे मित्र विकास ने कहा ''हम लोग के पास भी ज़यादा समय नहीं और नहीं इतनी बड़ी फिल्म बनाने जा रहे जिसके लिए इतना व्यस्था चाहिए ...... हम magistrate शाहब से मिलवा दीजिये हम ख़ुद अनुमति लेलेंगे ''
हम लोग अन्दर गए और magistrate से बात किये .......उन्होंने कहा ''हो जायेगा और जिस डेट को आप लोग चाह रहे लघ भाग उसे डेट को अनुमति मिल जाएगी '' ........मुन्सी ने फिर प्रार्थना पत्र पर सारी फोर्मिल्टी अदा किया और हाथो हाथ हम लोग को लेटर हाथ में मिल गया ......और उस प्रार्थना पत्र कि फोटो कॉपी और पांच जगह पर देना था .......सबसे पहले हम लोग ग्रेअटर नॉएडा गए entatainment office वहाँ पहुचने पर पाता चला कि 11.30 तक उनका कोई अता पता नहीं .....एक कर्मचारी से जब हमने पूछा ''कि कब तक आयेंगे'' .......तो उन्होंने कहा '' बड़े साहब है कब आये न आये इसका कोई भोरोसा नहीं '' हमने सोचा वाह क्या बात है ......इंसान कि फितरत तो देखिये कुर्सी निचित है इसलिए उन्हें अब किसी कि भी फ़िक्र नहीं । .......वहां से लौटने के बाद नॉएडा सेक्टर 14 gaye 'S.P traffic के पास ...लगभग उस समय वक्त हुआ रहा होगा 12.30 ..उनके भी अभी तक कोई अता - पता नहीं । इसी तरह 'यस पि सिटी , नॉएडा ऑथोरिटी ऑफिसर .....किसी का भी दर्शन नहीं था । ये तो एक दिन का हाल, जो हम लोंगो ने देखा । ऐसे न जाने कितने लोग रोजाना परेशान होते होंगे और ये अफसर तो सोचते होंगे हम तो अब कुर्सी पर है अब तो वही होगा जो हम चाहेंगे । केवल सिटी magistrate के अलवा को अल अफसर अपने दफ्तर पर मौजूद नहीं मिला। ज़रा सोचिये ये सारे अफसर समय के बाध्य होते तो सब के सब अपने दफ्तर में मौजूद होते तो हम लोग का काम एक ही दिन में हो जाता ।

July 29, 2010

देखते है निष्कर्ष क्या होता है .......

देवेश प्रताप

आखिर हम भी गंगा नहा लिए ......मतलब डकुमेन्ट्री फिल्म शूट कर लिए बस कुछ दिन में सम्पूर्ण करके आप सब के सामने प्रस्तुत करेंगे चलि बात करते है अपने विषय के बारे में .....मैंने इलाहबाद विश्वविद्दालय पर फिल्म बनाने का विषय तय किया ......इसका कारण इलाहाबाद विश्वविद्दालय से ताल्लुकात रखने का और फिर भारत कि प्रतिष्ठित विश्वविद्दालय में से एक .....साहित्य , कला , राजनीति .......तथा प्रशासनिक सेवा के लिए बहुत से महान हस्तियों को जन्म दिया लेकिन पिछले कुछ वर्षों से धीरे धीरे विश्वविद्दालय का सूरज ढलता हुआ नज़र आने लगा अभी हाल ही में इंडिया टुडे ने पुरे भारत के विश्व्विदालय कि रैंकिंग किया जिसमे इलाहबाद विश्व्विदालय को २३ वा स्थान दिया गया इन्ही कुछ बातो पर प्रकाश डालते हुए ......इस डकुमेन्ट्री के द्वारा इलाहाबाद विश्व्विदालय के बारें में दर्शाने का पूरा प्रयाश किया है
एक हफ्फ्ते इलाहबाद में खूब मुज मस्ती के साथ फिल्म शूट किया .........मै विकास , प्रांकुर दीक्षित .......और इलाहाबाद से और दो मित्र शशिकां और सौरभ ........हम सब मिलकर फिल्म शूट किये अब देखते है निष्कर्ष क्या निकलता है फिल्म एडिट करने के बाद ............कुछ तस्वीरें ....


एक नज़र इधर भी

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