April 28, 2010

जब अपने ही ......

देवेश प्रताप

एक ही देश कि मिटटी में जन्में लोग जिसमें से कुछ उस मिट्टी कि सुरक्षा के लिए अपनी जान कि बाजी लगा देते है ..और कुछ अपने ही देश कि मिटटी को बेचना शुरू कर देते हैजैसा कि अभी एक महिला आई यफ यस अधिकारी को भारत कि गुप्त सूचनाओं को पाकिस्तान के आईएसआई तक पहुचाने का मामला सामने आया हैये बड़े ही शर्म कि बात है ....उच्च पद पर नियुक्त अधिकारी अपने देश के साथ धोखा देने के बारें में सोच भी कैसे लेते हैक्या उनका ज़मीर ऐसा करते हुए ज़रा से भी नहीं धिकारताक्या उनके जहन में एक बार भी ये बात नहीं आती कि इसी देश की सुरक्षा करते हुए बहादुर सैनिक शहीद हो जाते है । दुशमन के साथ जब कोई अपना मिल जाये तो दुशमन के लिए हर रस्ते आसान हो जाते हैं ।
इसी तर्ज पर एक कहानी सुनाता हूँ,जो एक मेरे मित्र ने हमें सुनाई थी

एक बगीचे मैं कई पेड़ थे ...एक दिन एक लकडहारा आया और अपने कुल्हाड़ी से एक पेड़ पर वार करने लगा .....जिस पेड़ को लकडहारा काटने का प्रयास कर रहा था, उसके बगल वाले पेड़ कहा '' आज तू तो गया ये तुझे काट कर ही रहेगा '' कुल्हाड़ी की वार सहते हुए पेड़ ने कहा ...''ये जितना भी प्रयास कर ले मुझे नहीं काट पायेगा ''.....लकडहारा भी प्रयास करते करते थक गया और वह लौट गयालकडहारा फिर दुसरे दिन आया ,ये उम्मीद लेकर कि आज तो इसे गिरा कर रहूँगा .......दूर से लकडहारे को देखकर बगल वाले पेड़ ने फिर कहा ''आज तो तुझे पक्का नहीं छोड़ेगा '' घायल पेड़ बगल वाले पेड़ से कहा ''आज भी ये नहीं काट पायेगा'' ........और ऐसा ही हुआ लकडहारा अथक प्रयास किया लेकिन पेड़ को काटने में असफल रहा ...........तीसरे दिन फिर लकडहारा चल दिया पेड़ को काट गिराने के लिए ........इस बार लकडहारे को आते देख .......चोट खाया हुआ पेड़ बगल वाले पेड़ से कहा '' आज मै नहीं बचूंगा '' बगल वाले पेड़ ने झट से कहा ''क्यूँ ये तो दो दिन से तुझे काटने का प्रयास कर रहा था नहीं काट पाया तो आज कैसे काट लेगा '' चोटिल पेड़ ने कहा '' आज इसके साथ आपना (लकड़ी ) मिल गया है ......क्यूंकि दो दिन से बिना बेत कि कुल्हाड़ी लेकर आता था ........लेकिन आज उस कुल्हाड़ी में लकड़ी कि बेत लगा कर आया हैऔर लकड़ी तो अपने बिरादरी कि है ......जब वही साथ आगयी तो मुझे काटने में लकडहारे को कोई परेशानी नहीं होगी '' जब अपने ही लोग घर उजाड़ने वाले का साथ देने लगे ......तो उस घर को उजाड़ना आसान हो जाता है

कम से कम अपने देश की मिट्टी के साथ तो गद्दारी न करो !

April 14, 2010

मोहब्बत .......

देवेश प्रताप

मोहब्बत के अहसासों से
अधुरा
था मै
एक
हवा के झोके ने हमें ,
दास्तानेमुहब्बत सुनाई

अहसासों
के सरोवर में मोहब्बत
का
कमल खिलने लगे
मै पवन वो नदी बनकर साथ मचलने
लगे

प्यार कि कस्ती पर
हम
दोनों सवार
होगये
पतवार फेक कर दुनिया
जहाँ
से बेपरवाह हो गये ॥

जाना
था बहुत दूर ,
पर वक्त ने रोक लिया
सड़क
के दो किनारे कि तरह ,
जीने
के लिए छोड़ दिया

मुहब्बत आज भी है , कल भी रहेगी ये हम और वो जानते है
तड़प हम में भी है , तड़प उन में भी है ये सिर्फ ख़ुदा जानते है

April 7, 2010

योगनीति से अब राजनीति

विकास पाण्डेय

राजनीति की अब ऐसी कोई परिभाषा बची नहीं है,जिसकी बात की जाए.सियासत बाजो ने इसका हर पहलुओं पर चीर हरण किया है.कोई कहता है जीवन के इस अमूल्य समय को दो कौड़ी के राजनीति पर क्यों खराब किया जाए, तो किसी का कथन है कि यह किसका किया धरा है,जब साक्षर और बुद्धजीवी तबकों कि जनता अपना बेशकीमती वोट नहीं डालेगी तब तक इस देश में कुछ बदलने वाला नहीं है. तभी तो योग गुरु बाबा रामदेव ने कहा कि “शरीर का खोट तो कपाल भाति की चोट से दूर हो सकता है,लेकिन लोकतंत्र का खोट सिर्फ वोट की चोट से ही ठीक हो सकता है”।जब बाबा रामदेव की बात की है तो इस पर ही बात करते हैं .

विश्व भर में योगगुरु के नाम से मशहूर बाबा रामदेव ने ‘भारत स्वाभिमान’ के नाम से एक राजनीतिक पार्टी बनायी है,और उन्होंने कहा कि “ करोड़ो दलित मेरे अनुयायी हैं,और अगर मै बदलाव लाने की प्रक्रिया शुरू करूँगा तो सब मेरा साथ देंगे. अब आपको यह याद दिलाने की ज़रूरत नहीं की दलित नाम को कौन सी राजनीतिक पार्टी खूब भांजा रही है. और उसी के बल पर आज सत्ता में पूर्ण बहुमत से काबिज है. अब आप समझ सकते हैं बाबा रामदेव कौन सी रणनीत अपना रहे हैं. जैसा की बाबा जी ने कहा कि “मौजूदा राजनीतिक दलों से सत्य का अंकुश हट गया है . दलितों की हितैषी कहने वाली पार्टी को अब दलितों की फिक्र नहीं , दलित सिर्फ आलीशान पार्कों में अपने नेताओं की प्रतिमाएं निहार कर खोखला गौरव महसूस कर सकते हैं। इससे दलितों के पेट नहीं भरते और न ही उन्हें इन पार्कों में आसरा मिलता है”।

बाबा रामदेव को भलीभांति पता है कि अगर इस वर्ग का साथ मिल गया तो 2014 के लोकसभा चुनाव में उनका सपना पूरा हो जाएगा . लेकिन क्या इस देश में जो भी पिछड़े हैं वो दलित हैं,जो अनपढ़ हैं वे सिर्फ दलित ही हैं,या फिर उनको दलित कहकर जाती के नाम से उनका लाभ उठाना. एक तरफ तो बाबा जी ने कहा कि मै कोई पद नहीं लूँगा यहाँ तक तो बात ठीक लगती है ,लेकिन जनता को यह भी पता है कि सर्वोसर्वा के पद पर बाबा जी ही आसीन रहेंगे.

राजनीति में आना, देश को समृधी के शिखर पर पहुँचाना, विश्व भर में भारत के गौरव को बढ़ना ,एक अच्छे देश प्रेमी कि पहचान है. परन्तु किसी विशेष वर्ग को केन्द्र में रखकर राजनीति करना और उसमे सफल होना एक कुशल राजनीतिज्ञ को दर्शाता है लेकिन एक अच्छा मनुष्य नहीं.

अब देखना यह है कि जिस तरह भारत कि खोयी हुई योग संस्कृति को बाबा रामदेव ने वैश्विक स्तर पर पुनर्जीवित किया है,क्या उसी तरह राजनीति में नेक बदलाव कर सकेंगे .

April 4, 2010

मीडिया खड़ी है कटोरा लेके......

देवेश प्रताप

संचार इंसान के जीवन का सबसे अहम हिस्सा है । यदि संचार नहीं तो कुछ भी नहीं । यहीं से शुरू होता है मीडिया का रोल । समाज में पल रही समस्या ,अपराध ,तथा कुछ अचम्भित करने वाले तथ्य और कुछ भी नया जो लोगों तक पहुँचाना आवयश्क होता अतः यही से होता है ख़बरों का जन्म । लेकिन बदलते वक्त के साथ खबरों का मकसद भी बदल रहा है । और मकसद है केवल पैसा कोई ख़बर लोंगो तक पहुंचानी है इससे ज़्यादा ये ज़रूरी हो गया कि किसी ख़बर से कितना पैसा बन रहा है । इसका सीधा उदहारण IPL में देखने को मिल रहा है । २४ घण्टे निजी न्यूज़ चैनल IPL कि ख़बर पहुँचाने में बड़े सीरियस नज़र आते हैं, मजाल कोई छक्का -चौका या विकेट गिरा हो उसे ब्रेकिंग न्यूज़ बना कर न पेश करें । मै तो ये आशा करता हूँ कि प्रत्येक बाल को ब्रेकिंग न्यूज़ बनाना चाहिए क्यूंकि दर्शक भी आज कल ब्रेकिंग न्यूज़ के आदि हो गए हैं । जब तक कोई ख़बर ब्रेकिंग न्यूज़ न हो तो उस ख़बर में मज़ा ही कहाँ ? IPL के शुरू होने से पहले सैट मैक्स ने जब ये कहा कि न्यूज़ चैनल को केवल ७ मिनट के विडियो दिखाने के लिए देगा, तो न्यूज़ चैनल वाले का तेवर देखते ही बना था छोटे बच्चे कि तरह ज़िद करके सैट मैक्स को मनाया तथा ७ मिनट से अधिक विडियो प्रसारित करने के लिए राजी करवा लिया । और अब देखिये कैसे मसाला लगाकर IPL कि एक एक ख़बर आप तक पहुँच रही है । सिर्फ ख़बरें ही नहीं बाकायदा चर्चा भी होती है कि कैसे बल्लेबाज ने बल्ला उठाया और गेंदबाज ने कैसे हाथ नचाया और चर्चा में वो क्रिकेटर बैठते है जो अपने ज़माने में ठीक से क्रिकेट को समझ भी न पायें हों , उनका चेहरा आप लगभग हर एक निजी न्यूज़ चैनल में गौर करते होंगे क्यूंकि अब उनकी शायद यही रोजी-रोटी रह गयी है । अच्छा भी है कम से कम कहीं से तो अपने आप को क्रिकेट से जुड़ा हुआ पाते हैं वरना कौन पूछता । क्या मीडिया का यही दायित्व रह गया है । IPL के आयोजक मीडिया कि खिल्ली उड़ाते नहीं चुकते होंगे कि कैसे न्यूज़ चैनल पैसे के इस खेल को किस तरह प्रचारित और प्रसारित कर रहा है । कैसी है ये मीडिया पैसे के सामने घुटने टेक कर IPL के सामने आशाओं भरी नजरो से निहारती रहती है ।

April 3, 2010

तेरे शहर में .....

देवेश प्रताप


आज नजाने क्यूँ तेरा शहर
बेगाना लग रहा है ,
तेरे शहर के लोग तो पुराने है
मै ही इस शहर में नया लग रहा हूँ

आज बहारों ने मेरा स्वागत नहीं किया
फिजायें तो वही है , जो मेरे आने कि ख़बर
तुझ तक पंहुचा देती थी , जाने क्यूँ आज मै
उनके लिए पराया लग रहा हूँ

तेरे घर कि खिड़की तो खुली है ,
पर उस खिड़की पर इंतज़ार करता
कोई चेहरा नज़र नहीं रहा है

मैं बेचैन हूँ आज तेरी आहट ने
मुझ तक दस्तक दी ,
तेरी इस रुसवाई से बिखरता जा रहा हूँ
यादों के इस शहर में खो ता जा रहा हूँ

एक नज़र इधर भी

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