March 27, 2010

अर्थ आवर ( सायं 8.30 से 9.30 )

विकास पाण्डेय

आज 27 मार्च है, वैसे तो कोई ऐतिहासिक दिन नहीं है,लेकिन यदि हम चाहें तो इसे अविस्मर्णीय दिवस बना सकते हैं बस हमें रूपये कि मोमबत्ती खरीदनी होगी और बिजली से महज एक घंटे तक दूर रहना होगा अगर हम ऐसा करते हैं तो हम दुनिया भर के लाखों- करोड़ों लोगों कि जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा संरक्षण [अर्थ आवर] की इस मुहिम में शामिल हो जायेंगे

वैसे अपनी धरती को हरा भरा बनाने के लिए ये आइडिया ग़लत नहीं है,तभी तो 2007 से शुरू हुए इस अभियान में अभी तक छोटे - बड़े देशों को मिलाकर लगभग 90 देश और 4000 शहर जुड़ चुके हैं जब हम अपनी स्वेच्छा से अपने घरों की बत्ती बुझाते हैं तो हम समाज और दुनिया को बेहतर बनाने के आन्दोलन का अहम हिस्सा बन जाते हैं
अर्थ आवर ने दुनिया में ऊर्जा संरक्षण को बचाने की छोटी कोशिश में अपना विशेष योगदान दिया है वैसे मुझे लगता है की किसी भी महान कार्य का आगाज़ छोटे से ही होता है कौन जानता था की 2007 सिडनी ,आस्ट्रेलिया से शुरू हुई इस मुहिम में आज इतने सरे लोगों का समर्थन मिल जाएगा

वैसे इस साल लोगों को जागरूक करने के लिए अर्थ आवर का ब्रांड अम्बेसडर फिल्म अभिनेता अभिषेक बच्चन को बनाया गया है अर्थ आवर के प्रति लोगों में जागृति पैदा करने के लिए इस बार दिल्ली की सड़को पर नवयुवकों ने जगह - जगह साईकिल रैलियाँ निकाली और लोगों को इस संवेदनशील अभियान में जोड़ने का प्रयास किया

सिर्फ एक दिन ! एक दिन क्या , एक घंटा अर्थ आवर मनाने से कुछ नहीं होने वाला है हमको प्रतिदिन थोड़ा जागना होगा और अपनी तरफ से जितना हो सके कोशिश करनी होगी तब जाकर इस तरह की कोशिशें सफल होंगी ,खैर जिस दिन होली होती है उस दिन गुझिया खाने का स्वाद कुछ और ही होता है तो आज अगर एक विशेष घण्टा ( 8.30 pm - 9.30 pm) अर्थ आवर के नाम है तो मैं इसके लिए बहुत उत्साहित हूँ और इसका अभिनन्दन करता हूँ साथ में आपसे यह आग्रह करता हूँ की आप भी कृपया इसमें सहयोग दें

March 26, 2010

शमा और परवाना ......

देवेश प्रताप

शमा और परवाना एक दूसरे से अपने भावों को व्यक्त करते हुए कहते है .....


शमा कहती है

जलने दो मुझे

अकेले इस विरह में

तुम यूँ ने मेरे पास

आया करो,


परवाना कहता है

तुम्हारे इस प्यार पर

प्रिय ,मैं मिलने के

लिए मचल जाता हूं ,


बिखर जाती हूँ

तेरा प्यार पा कर,

तेरे छुअन से मैं

पिघल जाती हूं,


परवाना

तेरे आगोश में

आकार मै खो जाता हूं

जन्नत तेरे प्यार में पा

जाता हूं


शमा

ए परवाने

ये शमा तेरे लिए ही

रोशन होती है ,

तेरे प्यार में जलकर

इस जहां को रोशन करती है ॥

March 25, 2010

महान तो नारी हैं ..........

देवेश प्रताप

भारत देश में 'देवी' कही जाने वाली नारी पर सबसे ज़्यादा अत्याचार होता है ख़ास कर नारी को मात्र एक वस्तु के रूप में देखा जाता है त्याग करना तो इन्हें विरासत में दिया जाता है ....बचपन में अपने माँ-बाप , भाई के लिए शादी के बाद अपने पती और बच्चों के लिए बुढ़ापे में अपने बेटे के लिए इस जीवन सफर में 'ख़ुद ' के लिए वक्त नहीं निकालती , कष्ट के कितने भी थपेड़े आये वो हमेशा सिथिल रहती है .....सिर्फ इसलिए कि उसकी वजह से किसी को कोई दुःख पहुँचे , ........लेकिन कब तक कोई सहन करेगा ........बदलते समय के अनुसार महिलाओं में जागरूकता बढ़ी ......चाहे वो घरेलु हिंसा हो या बाहरी हिंसा उन्हें अपना हक़ समझ आने लगा हाल में जब महिला आरक्षण बिल पास करने कि बात आई तो ......सबसे ज़्यादा चोट हम पुरुषों को हुई ये बात कोई व्यक्त स्वीकार करें या करें महिलाओं का पुरुष से आगे बढ़ जाने का डर सभी पुरुष के मन में आया होगा और ये आना स्वभाभिक था खैर मंथन करने पर ये भी समझ में आगया कि ये ज़रूरत भी है इससे हमारे देश कि सूरत बदलेगी और महिलाओं को पुरुषों के बराबर खड़े होने का मौका भी मिलेगा .....वैसे मेरा मानना है पुरुष और स्त्री एक अमीबा के दो हिस्से है ..........जिसमें कोई छोटा है बड़ा दोनों ही बराबर है
अभी हाल में महिला आयोग ने मांग किया है कि ''पत्नी द्वारा पती के खिलाफ उसकी सहमती के बिना शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करने कि प्रक्रिया को बलात्कार श्रेणी में शामिल करें '' बड़ी ही आश्चर्य जनक मांग लेकिन आवश्यक मांग ........ऐसे कानून को तो तुरंत पास कर देना चाहिए अहसासों और प्रेम के बंधन से बंधता है शादी का रिश्ता जहाँ वादें होते है एक दुसरे को खुश रखना और जीवन भर साथ निभाने का .........उसी बंधन में ऐसी जास्ती होने लगी कि ''ख़ुद के पती द्वारा शारीरक अत्याचार किया गया रात का वाकया .... सुबह थाने में उसकी रिपोर्ट लिखवाने जाएगी '' अब ऐसे भी दिन अगये कैसे होता होगा वो व्यक्ति जो अपनी ही पत्नी के भावनों कि कद्र किये बिना शारीरक भूख मिटाता होगा ......उस समय उसमें और एक जंगली जानवर में कोई फर्क नहीं नज़र आता होगा ........ऐसे जाने और कितने कष्ट सहती रही है इस देश के महिलाएं यदि ये कानून पास भी हो जाये .......फिर भी १०० में १य ही महिला अपने पती के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाएंगी ......शादी के बंधन में यदि एक बार गाँठ पड़ती है तो ......वो बंधन कमजोर पड़ जाता है। और भारतीय महिला में उनके द्वारा किसी कि दुनिया उजड़ जाये ये उनसे गवारा नहीं होता ........और फिर ऐसे मामलो के लिए तो मुझे बिलकुल भी नहीं लगता तो क्या पुरुष उनके इसी नारीत्व गुण का फयदा उठाये .........नहीं .........यदि पुरुष तुम अपने आप को महान समझते हो तो .......ये तुम्हारा मिथ है ....... ''महान तो नारी है जो तुम्हे महान बनाने में अपना पूरा जीवन त्याग देती है ''

March 23, 2010

ये शहीदों की जय हिन्द बोली ........



विकास पाण्डेय

धन्य है वो माँ जिसके गर्भ से भगत सिंह जैसा साहसी ,वीर देशभक्त पैदा हुआ । गर्व से छाती चौड़ी हो गयी होगी,उस बाप कि जिस पल आज़ादी की भूख में हँसते-हँसते भगत सिंह ,राजगुरु और सुख देव फाँसी के फंदे को चूम लिया था।
आज इन्ही लालों की 81 वी बलिदान दिवस है। आज ही का वो दिन था, जब इन वीरों ने हमें गुलामी से मुक्त कराने के लिए फाँसी के तख्ते पर चढ़ गए थे । समय से एक दिन पूर्व इनका फाँसी पर चढ़ना, पूरे देश में आज़ादी पाने की ख्वाहिश को और भी भड़का दिया था । तभी तो गाँधी जी ने कहा था की " मै भगत सिंह की विशेषताओं को शब्दों में बयां नहीं कर सकता ,भगत सिंह की देशभक्ति और भारतीयता के लिए उसका अगाध प्रेम अतुलनीय है "

भगत सिंह ,सुख देव और राजगुरु का देश के प्रति अमिट प्रेम ,जूनून और जोश उनकी अविस्मर्णीय गाथा का अतुलनीय उदहारण है।

भगत सिंह द्वारा आखिरे शब्द जो उन्होंने हिंदुस्तान के गवर्नर जनरल को लिखा था कि "अगर आपकी सरकार हिन्दुस्तानी समाज के ऊपरी तबकों के नेताओं को छोटी-मोटी रियायतों समझौतों के जरिये लुभाकर अपनी तरफ करने और इस तरह संघर्षशील जन समुदाय के बीच कुछ समय के लिये निराशा पैदा करने की कोशिश करती है तथा इसमें कामयाब हो जाती है, तो भी इसकी परवाह करो। हमारी जंग जारी रहेगी अलग-अलग समय पर यह अलग-अलग रूप ले सकता है। यह कभी खुला तो कभी गुप्त, कभी पूर्णतया उत्साहजनक या कभी जीवन-मौत का घमासान संघर्ष हो सकता है। रास्ता खूनी होगा या कुछ हद तक शांतिपूर्ण, इसका चयन आपके हाथ में है। जैसा भी जरूरी समझते हो, वैसा करो। परन्तु वह जंग निरंतर चलेगा, नयी ताकत, ज्यादा बहादुरी और अडिग संकल्प के साथ, जब तक समाजवादी गणराज्य की स्थापना होगी "

मै बचपन से ही यह देशभक्ति गीत सुनता आ रहा हूँ ,और आज भी जब इसे सुनता हूँ तो उन्ही यादों के गलियारों में खो जाता हूँ । और आज इस गीत के माध्यम से इन जाबाजों को श्रधांजलि देता हूँ।


ये शहीदों कि जय हिन्द बोली ,
ऐसी वैसी ये बोली नहीं है
इनके माथे पर है खूँ का टीका ,
देखो देखो ये रोली नहीं है
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थक गया वीर जब लड़ते लड़ते ,
माँ कि ममता तड़प कर ये बोली
मेरे लाल गोदी में सो जा ,
अब तेरे पास गोली नहीं है
नहीं है, अब तेरे पास गोली नहीं है

March 22, 2010

रेल के नन्हे सेवक


देवेश प्रताप


बचपन का सफर बहुत सुहाना होता है , कोई गम नहीं कोई बोझ नहीं, न कुछ खोने का डर, न कुछ पाने कि ललक ,ऊपर वाले का भी खेल निराला होता है किसी को इतनी खुशियाँ देता है कि उनकी जिंदगी उन्ही खुशियाँ के बीच कट जाती है। और किसी को इतना दुःख कि उन दुखों के बीच कुछ देखने को बचता ही नहीं ,और दुःख का असर तब ज्यादा होता है जब बचपन के खिलने का समय होता है।

एक शहर से दूसरे शहर ,एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन तक सफर करती रेल गाडी न जाने कितने यात्रियों को अपने आगोश में लेती है। और मंजिल आने पर छोड़ देती है । अक्सर रेलगाडी ,में बचपन सफर करता मिलता है हाथ में झाड़ू लिए , पोलिश लिया या फिर पानी कि बोतलें लियें , देश के सबसे बड़ी सेवा रेल सेवा में अक्सर ये नन्हे सेवक यात्रियों कि सेवा करते मिलते है ,कितना मार्मिक होता है ,जब एक बच्चा हाथ में झाड़ू लिए रेल के डिब्बे कि सफाई करना शुरू करता है। देख कर ऐसा लगता है जैसे उस नन्हे फरिस्ते को ऊपर वाले ने खुद भेजा हो ,सफाई करने के लिए वो फरिस्ता इस तरह मन लगा कर काम करता है जैसे रलवे ने खुद उसकी नियुक्ति किया है ,सफाई करने के बाद जब ,वो नन्हे हाथ आगे बढते अपने मेहनताना लेने के लिए उस समय डिब्बे में बैठे कुछ यात्री जिनका दिल पसीजता है वो एक या दो रु निकाल कर पकड़ा देते है , और कुछ बुत बनजाते है जैसे उन्होंने कुछ देखा ही नहीं । अब देखिये दूसरा नन्हा सेवक आ गया इसके हाथ में बूट पोलिश करने के लिए ब्रुश है ,इस बच्चे कि आँखों में बस एक ही आश दिख रही है ,कि जिन्होंने भी चमड़े का जूता पहन हुआ है , वो पोलिश करवा ले जब कोई अपना जूता पोलिश करवाने के लिए पैर आगे बढाता है तो बच्चा उस जूते कि तरफ ऐसा लपकता जैसे उसकी सारी खुशी मिल गयी हो , और फिर जुट जाता मन लगा कर जूता पोलिश करने में ,उस वक्त बच्चे कि जितनी भी आकाँक्षाओं कि चमक होती है ,उस चमक को जूते में उतार देना चाहता है , क्यूंकि बूट पोलिश के अवेज़ में जो भी पैसा मिलेगा ,उन पैसों से अपनी इच्छाओं कि पूर्ति करने कि कोशिश करेगा . लेकिन इच्छाओं कि प्यास कभी बुझती नहीं , इच्छा कि प्यास बुझे या न बुझे लकिन यात्रियों कि प्यास बुझाने के लिए एक और बालक हाँथ में पानी कि बोतलें लिए यात्रियों के पास आता है , उस बच्चे ने शायद अपनी प्यास बुझाने के बारें में न सोचा हो ,लेकिन यात्रयों कि सेवा करने के लिए तत्पर्य है , ''निर्मल स्वच्छ पवित्र '' पानी के ये गुण बचपन में भी विद्यमान होता है कितनी समानता है पानी और बचपन में ,पानी मज़बूरी वश उस बोतल में कैद है .और वो बालक अपने जीवन से मजबूर है . ऐसे न जाने कितने बचपन अपने जीवन के साथ सफर कर रहे है , इन देश के भविष्य का जिम्मेदार कौन है उनके माँ -बाप या फिर सरकार , ये भी कहना मुश्किल . इन बच्चो का देख भाल करने के लिए कई गैर सरकारी संस्था काम करती है और कुछ सरकारी संस्था भी , तो क्या उस संस्था से जुड़े व्यक्तियों से ऐसे बच्चों से मुलाकात नहीं होती ,वैसे कभी तो वो भी रेल में सफर करते होंगे , लकिन ये भी बात है ऐसे लोग वातानुकूलित डिब्बों में सफर करते है , तो बात ही खत्म उस डिब्बे में भारत तो विकास कि चरम पर है ।

एक नज़र इधर भी

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